subodh

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Monday 29 September 2014

24. पैसा बोलता है ...


जो शख्स कंडीशनिंग का शिकार होता  है वो कंडीशनिंग का शिकार होने के बावजूद स्वयं को स्वस्थ और नार्मल मानता है .उसे आसानी से ये बात समझ में नहीं आती कि उसके निर्णय उसके नहीं होकर उस व्यक्ति के है जिसको देखकर,सुनकर वो ऐसा बना और विकसित हुआ है .
 सालों से ऐसा व्यवहार करते और होते रहने की वजह से ये उसका  कम्फर्ट जोन हो गया है इससे बाहर झांकना उसके  लिए तकलीफदेह होता है लिहाजा वो  अपने खोल में ही सिमटे रहना चाहता  है ,अगर आप उसको  बतायेगे कि उसका  खोल पुराना हो गया है या गंदला गया है तो वो  आपसे नाराज हो जायेगा  और धर्म,समाज,परिवार ,अतीत वगैरह के उदाहरण दे कर खुद को जायज ठहराने का प्रयास करेगा  . 
पिछले दिनों मेरे घर पर मेरा एक दोस्त आया हुआ था उसने रिस्ट वाच पहनी हुई थी , करीबन दो घंटे गप-शप   करने के बाद उठने से पहले उसने समय देखने के लिए अपने मोबाइल का इस्तेमाल किया तो मुझसे रहा नहीं गया मैंने उससे पूछा कि जब तुमने समय अपने मोबाइल से ही देखना है तो तुमने घड़ी क्यों पहनी हुई है,तुम्हारी तो घड़ी भी एक आर्डिनरी घड़ी है कोई डिज़ाइनर या एंटीक  टाइप की भी नहीं है.
मेरा दोस्त पढ़ा लिखा है सालों से मोबाइल ( MOBILE ) इस्तेमाल कर रहा है ,मोबाइल के ढेरों फीचर्स उसकी जानकारी में है लेकिन उसने जो जवाब दिया वो  जवाब हैरान करने वाला था "क्योंकि मेरे पिताजी और दादाजी भी घड़ी पहनते थे इसलिए मैंने घड़ी पहनी हुई है !!!!  "
कुछ लोग समय में जम जाते है ! मेरा दोस्त समय में जम गया है ,उसके दिमाग की कंडीशनिंग ऐसी हो गई है कि घड़ी का उसके लिए कोई भी व्यवहारिक उपयोग न होने के बावजूद वो घड़ी का वजन अपनी कलाई पर ढोता है .
मुझे रिस्ट  वाच पहने हुए करीबन दस साल गुजर गए है !!! 
आपको ?
अगर आपने मोबाइल होने के बावजूद  घड़ी पहनी हुई है तो चेक करें आपने घड़ी क्यों पहनी है ?
क्या आपके पास ऐसा कोई जवाब है जिससे आप खुद को कह सके कि मैं किसी कंडीशनिंग का शिकार नहीं हूँ .अगर आपने ऐसा कोई कारण ढूँढ लिया है तो शुरू का पहला पैराग्राफ पढ़ लेवे !!! 
हो सकता है धन के मामले में हम  किसी कंडीशनिंग का शिकार हो और हमे इसका पता ही नहीं हो !
-सुबोध 

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