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Monday 22 December 2014

29 . ज़िंदगी – एक नज़रिया


हो सकता है ये छोटा सा नज़र आने वाला अवसर ही बड़ा अवसर हो और आप  इस ताक में बैठे हो  कि कोई बड़ा अवसर मिले और मेरे वारे- न्यारे हो जाये .

अगर गौर करें तो अवसर सिर्फ एक तटस्थता भरी परिस्थिति  है वे आपके प्रयास है जो इनमे रंग भरते है या इन्हे बदरंग करते है जिस तरह एग्जामिनेशन हॉल में मिला हुआ पेपर एक तटस्थता भर है आपके प्रयास अगर उचित स्तर के है तो आपके सामने ये बेहतरीन अवसर है अन्यथा ये एक छोटा अवसर था जिसे आपने कोई ईज्जत नहीं दी और बदले में आपकी बेईज्जती हो गई !!

क्या ज़िन्दगी में आपकी  हर समस्या के साथ यही नहीं हो रहा है ? आप बाहर को सुधारने की कोशिश कर रहे है ,या ये उम्मीद कर रहे है कि बाहर सुधर जायेगा और आपके लिए बेहतरीन अवसर पैदा करेगा - आपके अंदर क्या है आप इसे जानना और समझना  ही नहीं चाहते . ये जानिये और समझिए  जब तक आप अंदर से काबिल नहीं बनेंगे बाहर चाहे जितने बड़े अवसर हो आप नाकाम ही रहेंगे .

सचिन तेंदुलकर के लिए जो शॉट आसान है आपके लिए वो मुश्किल है इसकी वजह "बॉल मुश्किल थी" नहीं है बल्कि ये है कि सचिन की तैयारी अंदर से  है जिसे उसने लगातार के अभ्यास से हासिल किया है और आपने तैयारी न करकर एक आसान बॉल की उम्मीद पाल रखी है . अगर सचिन भी आपकी तरह ही सोचता कि आसान बॉल आने पर शॉट मारूंगा तो क्या वो सचिन होता ? उसने प्रत्येक  बॉल को- चाहे वो आसान हो या मुश्किल ,चाहे वो हलकी हो या भारी,चाहे वो छोटी हो या बड़ी एक अवसर की तरह देखा है और खुद को अंदर से मजबूत किया है तो सचिन बाहर से मजबूत है .उसने हर फैंकी हुई बॉल को एक अवसर माना है - छोटा अवसर या बड़ा अवसर नहीं - सिर्फ अवसर और यही  उसकी खासियत उसे सचिन बनाती है .
कृपया ध्यान देवे -अवसर छोटा या बड़ा नहीं होता बल्कि आप छोटे या बड़े होते है -ज़िन्दगी को गलत नंबर के चश्मे से मत देखिये .
सुबोध - दिसंबर २२,२०१४ 

Monday 8 December 2014

28 . ज़िंदगी – एक नज़रिया


ज़िन्दगी जब मुश्किल हो जाये ,इतनी मुश्किल कि तुम हौंसला हारने लगो तो गौर करना और देखना डूबते हुए सूरज को कल वो वापिस लौटेगा कुछ सुस्ताने के बाद ,नए सिरे से इस संसार को रोशन करने ; तो गौर करना और महसूस करना जिस्म से छूटती हुई सांस को , वो छोड़ी इसलिए जाती है कि कार्बन डाई ऑक्साइड निकाल सके और नई ऊर्जा के लिए ऑक्सीजन ले सके . ज़माने में कुछ ऐसे लोग थे जिन पर तुम्हे अटूट भरोसा था और वे तुम्हारे इस मुश्किल दौर में तुम्हारे साथ नहीं थे ( अच्छा हुआ कार्बन डाई ऑक्साइड निकल गई - वे तुम्हारी ज़िन्दगी के बैरियर थे ) लेकिन कुछ ऐसे लोग भी थे जिनसे तुम्हे कोई उम्मीद नहीं थी फिर भी वे जाने- अनजाने तुम्हारे साथ खड़े थे . और शुक्रिया अदा करना नीली छतरी वाले का कि उसने तुम्हे मौका दिया अपने पंख पसारने का, तुम्हारे अनुभव के संसार को समृद्ध करने का , असली और नकली की पहचान करने का ,बंद अँधेरे विश्वास की गलियों में भटकते मन में उजाला भरने का ,और शुक्रिया अदा करना उन साथियों के लिए जो मुश्किलों के दौर में तुम्हारे साथ खड़े थे कुछ पुराने और कुछ नए साथी .
तुम अपनी ज़िन्दगी की मुश्किलें मत देखना वो उपलब्धियां देखना जिन्होंने तुम्हे कभी गौरव दिया था किसी ने आशीष में तुम्हारे सर पर हाथ रखा था किसी ने स्नेह से तुम्हारा माथा चूमा था और अपनी उस सोच को विस्तार देना जो तुममे ऊर्जा भरती थी ,अपने उन ख्वाबों को याद करना जो तुम्हारे बचपन जितने ही मासूम थे ,निश्छल थे यकीन मानो तब तुम्हे अपनी मुश्किलें छोटी लगेगी और विश्वास होने लगेगा कि मैं अब भी जीत सकता हूँ -बड़ा और आसान लगेगा .
सुबोध
९ दिसंबर , २०१४

Monday 1 December 2014

27 . ज़िंदगी – एक नज़रिया

गलतियां हर इंसान करता है - अगर वो ज़िंदा है तो !


लेकिन फर्क इससे पड़ता है कि आपने उन गलतियों पर प्रतिक्रिया क्या और कैसे की है ,आपने गलती होने के बाद अपना माथा पीटा है या उन गलतियों से सबक लिया है .आपने आगे से कोई गलती न हो जाए इस डर से चलना ही बंद कर दिया है या बार-बार गलती कर कर, गिर-गिर कर साईकिल चलाना सीख लिया है .

अगर आपने साईकिल चलाना सीख लिया है तो जाहिर सी बात है उन दिनों आपके अंदर कोई एक आग जल रही थी ,कोई एक लगन लगी थी जो बार-बार गिरने ,चोट लगने के डर से ज्यादा ताकतवर थी . और अगर आपने नहीं सीखा है तो इसकी वजह ये नहीं थी कि साइकिल लम्बी थी या पेडल तक आपके पैर नहीं पहुँच पा रहे थे या पीछे से पकड़ने वाला सही नहीं था या आपको सिखानेवाला कोई भी नहीं था बल्कि असली वजह ये थी कि आपमें वो आग ही नहीं थी ,वो लगन ही नहीं थी जो आपको साइकिल चलाना सिखवा दे .

तीन साल पुरानी घटना याद आती है ,रात को एक बजे ठक -ठक  की आवाज़ आ रही थी मैंने जानकारी की तो पता चला कपूर साहब का लड़का क्रिकेट सीख रहा है ,रात को एक बजे अपने किसी दोस्त के साथ वो डिफेन्स की प्रैक्टिस कर रहा था ,इस साल वो अपने स्टेट की तरफ से खेल रहा है -इसे आग कहते है ,इसे लगन कहते है ,इसे ज़ज़्बा कहते है - उसने अपनी कमी देखी, समझी कि उसकी बैटिंग कमजोर है ,बैटिंग करते वक्त वो बार-बार गलती कर जाता है ,कंसंट्रेट नहीं कर पाता है -उसने अपनी गलती को समझा और उसे दूर किया ,अपनी गलतियों पर उसकी प्रतिक्रिया  सकारात्मक थी लिहाजा एक आग उसके अंदर पैदा हुई और उसने अपने घरवालों को गौरवान्वित किया .

जिन दिनों आपने साइकिल चलाना सीखा था उन दिनों वाली आग , उन दिनों वाली लगन आपमें आज भी ज़िंदा है ?

अगर है तो गलतियाँ आपका इंतज़ार कर रही है - सफलता भी !!

और अगर नहीं है तो अपने ख्वाबों को इतना बड़ा कीजिये कि आपकी रातों की नींद उड़ जाए और आप अपने किसी दोस्त के साथ रात को एक बजे डिफेन्स सीखने के लिए ठक -ठक  करने लगे !!! ( कृपया पड़ोसियों के प्रति विनम्र रहे और उनकी सुविधा का ख्याल रखे ! )

सुबोध - २२ नवंबर,२०१४