subodh

subodh

Tuesday 28 April 2015

37 . पैसा बोलता है ...

तुम्हारी हार की वजह , असफलता की वजह तुम्हारा अहंकार है कि मैं सब कुछ जानता हूँ - मैं मानता हूँ तुम बहुत कुछ जानते हो , जवान हो , काबिल हो, नई पीढ़ी से हो, टेक्नोलॉजी कैसे काम करती है, सिस्टम कैसे बनाये जाते है , कैसे चलाये जाते है - सब कुछ जानते हो तुम और इस सब कुछ जानने ने तुम्हे अहंकारी बना दिया है जिसे तुम सब कुछ जानना समझ रहे हो और जिस वजह से तुम्हे अपने ज्ञान का गुरूर है वो सब कुछ जानना तब तुम्हारी हार की पोल खोल देता है जब तुम्हारे बैंक स्टेटमेंट देखे जाते है !!
तुम्हारा सारा ज्ञान किताबी ज्ञान है , सामाजिक ज्ञान है , लफ्फाजी ज्ञान है - इतने वाक्पटु हो तुम , इतने कॉंफिडेंट नज़र आते हो कि किसी को भी भरमा सकते हो , जब मार्केटिंग की बात आती है तो जितनी डिटेल में जाकर तुम चीज़ों को बयां करते हो , तुम पर गर्व होता है , जब सेल्स की बात आती है तो जितने कफिडेन्स से तुम क्लाइंट से बात करते हो और प्रोडक्ट सेल कर देते हो , आश्चर्य होता है और तुम्हारे भविष्य को सिक्योर महसूस करता हूँ लेकिन परेशान तब हो जाता हूँ जब तुम्हारे बैंक स्टेटमेंट देखता हूँ !!
क्या है ऐसा जो तुम नहीं जानते हो जिस वजह से तुम्हे हमेशा क्रेडिट कार्ड के भरोसे अपनी ज़िन्दगी गुजारनी पड़ती है और तुम्हारे बैंक अकाउंट में हमेशा कुछ भी क्यों नहीं होता ? इस "क्या" की तलाश करना तुम्हे ज़रूरी क्यों नहीं लगता , हर तरह से काबिल होने के बाद भी- लीड जनरेट करने से लेकर सेल क्लोज करने तक ,प्रोडक्ट तैयार करवाने से लेकर डिलीवर करवाने तक ,बैक ऑफिस से फ्रंट ऑफिस मैनेज करने तक - हर चीज़ जानने के बावजूद भी तुम्हारी ज़िन्दगी संभली हुई क्यों नहीं है ?
ज़िन्दगी में ध्यान रखना इस आर्थिक युग में सफलता पैसे से नापी जाती है , तुम्हे काबिल तब माना जाता है ,जब तुम्हारे बैंक स्टेटमेंट इतने काबिल हो कि किसी तरह के लोन को सेंक्शन करने में बैंक ऑफिसर के माथे में सिलवटें न पड़े , इस युग कि ये विडंबना है कि इस युग में प्रधान पैसा है व्यक्ति गौण है ,तुम्हारा ज्ञान , तुम्हारा हुनर , तुम्हारी कमाई सब बेकार है अगर तुम्हारे बैंक स्टेटमेंट सही नहीं है और तुम्हारी ज़िन्दगी क्रेडिट कार्ड के भरोसे चलती है .
मेरे ख्याल से तुम्हारी सबसे बड़ी जो प्रॉब्लम है वो कैश फ्लो और प्रॉफिट के बीच के फर्क को ढंग से नहीं पहचान पाने की है या ज्यादा बेहतर तुम खुद जानते हो, सफलता जो बाहर से नज़र आती है वो बैंक स्टेटमेंट में नज़र क्यों नहीं आती ? बाहर से खुश नज़र आने से तुम सही मायने में खुश नहीं हो जाते,सही मायने में तुम्हे ख़ुशी तब मिलती है जब तुम अंदर से खुश होते हो और ये ध्यान रखना ज़िन्दगी की वित्तीय सफलता / खुशियां बैंक स्टेटमेंट से निर्धारित होती है जो अंदर का हिस्सा है - बाहर तो सिर्फ ताम-झाम है बाहर वालों के लिए !!!!
सुबोध- अप्रैल २९, २०१५

www.rechargesathi.com
( one sim all recharge )

Friday 10 April 2015

36 . ज़िंदगी – एक नज़रिया


रोटी की कीमत एक भूखा इंसान ही समझ सकता है , नौकरी की कीमत उससे पूछे जिसकी अभी-अभी नौकरी छूटी हो .पैसे की कीमत उससे पूछे जिसने अपना सब कुछ गवाँ दिया हो !!
असफलता , टूटन , हताशा ज़िन्दगी का मकसद नहीं है लेकिन ये भावनाएं हमसे उसी तरह चिपकी हुई है जिस तरह जिस्म से चमड़ी.
इंसान की ज़िन्दगी उस खेल की तरह है जिसमे एक पल हम ऊपर होते है और दूसरे पल नीचे , मुसीबत ये है कि हम ज़िन्दगी के उन पलों में जीते है जब हम नीचे होते है हम ऊपर होकर भी नीचे होने के खौफ में जीते है .
जो इंसान भूखा रह चूका है- भूख की पीड़ा , दर्द , ऐंठन, उबकाई, जकड़न जैसे दौर से गुजर चूका है वो इंसान सामने भरपूर खाना होने के बाद भी उस भूख के एहसास को जीता रहता है और छप्पन भोग को भी एक दंड समझता है और उस दंड से बचने के लिए या तो वो संग्रह करता है या उसे बर्बाद करता है ;यहाँ संग्रह करने का अर्थ चीज़ होने के बाद भी उसका भरपूर उपयोग न करने से है और बर्बाद करने से अर्थ फ़िज़ूलखर्ची से है .
भूख सिर्फ खाने की ही नहीं होती , मान -सम्मान की होती है ,पहुँच की होती है, सुविधाओं की होती है , पैसे की होती है और भी ढेरों चीज़ों की होती है और मानवीय प्रकृति के अनुसार हम हर भूख के साथ यही करते है या तो उसे संग्रह करके सजा कर रखते है या उसे दोनों हाथों से लूटा देते है .
इसे थोड़ा पैसे के सन्दर्भ में सोचिये, समझिए और यकीन मानिये आपके सन्दर्भ का विस्तार होने लगेगा , अपनी उन गलतियों को याद कीजिये जो पैसे को लेकर आपने की है जहाँ इसे खुला छोड़ना चाहिए था वहां किस बुरी तरह जकड कर रखा था और जहाँ इसे सम्भालना चाहिए था वहां दोनों हाथों से लूटा दिया था .
जिन गलतियों को किया है उन गलतियों को अगर नहीं किया जाता तो क्या होता ?
जिन पलों में हम ऊपर थे उन पलों को हम नीचे के खौफ में क्यों गुजारते रहे है- क्यों उन पलों को, उन पलों की सोच को साकार होने दिया ?
मुझ से किसी जवाब की उम्मीद मत कीजिये , क्योंकि मेरा जवाब मेरे लिए है और आपका जवाब आपके लिए ,सवाल सबके लिए एक हो सकते है लेकिन जवाब हमेशा निजी होते है !!
सुबोध-मार्च २६, २०१५