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ज़िंदगी – एक नज़रिया

26 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया 
एक दिन तुम्हारे चेहरे की ख़ूबसूरती पुरानी पड़ जाएगी ,तुम्हारा कसा हुआ जिस्म झुर्रियों से भर जायेगा , चमड़ी का कसाव, उसकी चमक अतीत की बात हो जाएगी , घनी लहराती जुल्फे चांदी के तारों में बदल जाएगी ,तुम्हारी रौबीली खनकदार आवाज़ लड़खड़ाने लगेगी ,वो कदम जिनसे धरती हिलती है उठाये न उठेंगे , वो हाथ जो कइयों के लिए सहारा बनते है किसी सहारे की तलाश करेंगे - सब के साथ ऐसा होता है तुम्हारे साथ भी होगा लेकिन तुम एक भ्रम में जी रहे हो जैसे जवानी का अमृत पीकर आये हो !!

तुम्हारी जवानी तुम्हारे बचपन को कुचलकर आई है तो कोई तुम्हारी जवानी को भी कुचलेगा ,स्थायी कुछ भी नहीं होता और तुम हो कि अपनी जवानी के जोश में ज़माने को अपनी मुट्ठी में करने चले हो !!

बंधु,जमाना तो मुट्ठी में भिंची हुई रेत है जितना कसोगे तुम्हारी पकड़ से फिसलता जायेगा . आखिर में चंद जर्रे तुम्हारी हथेली से चिपके रह जायेंगे जो तुम्हारी अच्छाइयां ,तुम्हारी बुराइयां ,तुम्हारी खासियतें ,तुम्हारी कमियां तुम्हे याद दिलाएंगे .

मैं नहीं कहता कि तुम ये करो या वो करो - कोई उपदेश कोई नसीहत नहीं - निर्णय तुम्हारा है जो भी तुम करना चाहो करो क्योंकि जरूरी नहीं मेरा सच तुम्हारा भी सच हो - सच तो बिलकुल व्यक्तिगत होता है . मेरा सच तुम्हारा झूठ हो सकता है और तुम्हारा सच मेरा झूठ . मेरी रोशनी तुम्हारे लिए अंधकार हो सकती है या तुम्हारी रोशनी से मेरी आँखे चुँधिया सकती है . फर्क मानसिकता का हो सकता है ,वास्तविकता का हो सकता है .

हो सकता है मेरी निगाहों में मेरा बुढ़ापा पीड़ादायक हो जबकि तुम्हारी निगाहों में जन्नत की पहली सीढ़ी - सुकून के लम्हों की शुरुआत ; निर्भर इस पर है कि मैंने या तुमने अपनी जवानी के दिनों में अपने बुढ़ापे के लिए तैयारी कितनी और कैसी की है !!!
सुबोध- १९ नवंबर, २०१४























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25 . ज़िंदगी  – एक नज़रिया  

कल का मेरा सच आज सच नहीं रहा ,जब मैं उस सच को आज झूठ बताता हूँ तो तुम आश्चर्य करते हो !

आज जिसे मैं सच मान रहा हूँ हो सकता है कल मैं उसे सच नहीं मानूं हो सकता है तुम मेरी बात नहीं समझ पाओ और फिर आश्चर्य करो.
बेहतर है तुम मेरे कल के सच को जो आज झूठ बन गया है , सच और झूठ के शब्दों में मत उलझाओ बल्कि उन तर्कों को सुनो और समझो जो मैंने तब दिए थे या जो अब दे रहा हूँ ,अगर मैं दोषी हूँ तो दोषी तुम भी हो जिसने मेरे तर्क सुने और माने और उन तर्कों को सच या झूठ का नाम दे दिया .
ज़माने की रफ़्तार इतनी बढ़ गई है कि कल के सच या झूठ आज सच या झूठ नहीं रहे , सारी धारणाये बदल गई ,सारे तर्क बदल गए .

दो सौ साल पहले का सच था शांति से बिना चीखे-चिल्लाये एक दुसरे की बात सुनना हो तो दोनों को आस-पास होना चाहिए लेकिन आज का सच है सात समुन्दर पार का इंसान भी बिना चीखे-चिल्लाये शांति से एक दूसरे की बात सुन सकता है सिर्फ उसे मोबाइल का इस्तेमाल करना है . एक अविष्कार कई सच झूठ बना देता है और कई झूठ सच हो जाते है .

सौ साल पहले महाभारत का संजय जो कुरुक्षेत्र का आँखों देखा हाल धृतराष्ट्र को बताता है कपोल कल्पना कहलाता था किस्से-कहानियों की बात था लेकिन आज तुम टी.व्ही पर आँखों देखा हाल देखते हो और स्वीकार करते हो : कल का झूठ आज सच बन गया है ".

दो सौ साल पहले औद्योगिक युग में " पढोगे-लिखोगे बनोगे नवाब " वाला मुहावरा आज क्या वही अर्थ रखता है ? तब नौकरी मिलना आसान था और आज नौकरी मिलना और नौकरी बने रहना मुश्किल है , कुछ सच या झूठ बदल गए है और कुछ बदलने के बहुत करीब है .
यह नया युग है जहाँ नए सच गढ़े जायेंगे और कल के सच खंडित किये जायेंगे और यही झूठ के साथ भी होगा , कुछ झूठ गढ़े जायेंगे और कुछ खंडित किये जाएंगे .

और भविष्य में -आने वाले सालों में, जब आज अतीत बन जायेगा यह प्रक्रिया तब भी जारी रहेगी.

हर युग के अपने सच होते है और अपने झूठ जो अगले युग में बेमानी हो जाते है ,वो युग अपने सच और अपने झूठ खुद गढ़ता है .

तो मेरे आज के सच को या झूठ को तुम सच या झूठ आज का मानो कल का पता नहीं कल वो रहेगा या बदल जायेगा !!!!

महत्त्वपूर्ण सच नहीं है और न हीं झूठ है बल्कि महत्त्वपूर्ण तुम्हारा मेरे तर्कों को मानना या नकारना है !!!!
- सुबोध













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24 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया  

सिर्फ एक प्रचलित मुहावरा है जिसे जन समर्थन प्राप्त है और वो भावनाओं से ओत -प्रोत है इसलिए वो सही नहीं हो जाता .

मैं किसी की भावनाएं आहत नहीं करना चाहता सिर्फ मेरा एक पक्ष रख रहा हूँ ,हो सकता है आप इससे सहमत न हो तो कृपया अपना पक्ष रखे -तर्क और शालीनता के साथ जिस तरह से मैं रख रहा हूँ !

लोग माँ-बाप को भगवान से भी ऊपर दर्ज़ा देते है - उनकी निगाह में सुख-दुःख भगवान उनके भाग्य में लिखता है ,जबकि माँ-बाप सिर्फ सुख ही लिखते है !!

फेसबुक पर डालने और लाइक लेने में इसका मुकाबला नहीं है - बिलकुल किसी लोकप्रिय टॉपिक की तरह !!

आइये थोड़ा इसका विश्लेषण करे !!

क्या वाकई भाग्य भगवान लिखता है ?

या इंसान के किये गए कर्म ही उसे सुख या दुःख देते है , सफलता और असफलता भगवान ने गढ़ी है या इंसान ने ?

दूसरा वाक्य माँ-बाप भाग्य में सिर्फ सुख ही लिखते है,क्या वाकई ?

मेरे कॉलोनी में रहने वाले रहीम भाई के घर पिछले महीने आठवाँ बच्चा पैदा हुआ है . रहीम भाई खुद साईकिल के पंचर बनाने का काम करते है उनकी शरीके हयात सबीना भाभी लाख की चूड़ियाँ बनाने का काम करती है ,ज़रुरत पर कॉलोनी वाले उनसे घरों में भी साधारण सी मजदूरी पर काम करवा लेते है . वाकई रहीम भाई और सबीना भाभी ने अपने बच्चे के भाग्य में सिर्फ सुख ही लिखा है !

मध्यम वर्गीय कपूर साहब के सिर्फ दो बच्चे है एक लड़का और एक लड़की , अगर डिटेल में उनसे बात की जाए तो उन्हें ये नहीं पता कि उनके उन्नीस वर्षीय बेटे का भविष्य क्या है ,वो जो पढाई कर रहा है आने वाले भविष्य में उससे क्या हासिल होगा. वे अपने बिज़नेस में इतने व्यस्त है कि उन्हें ढंग से अपने बेटे के साथ बैठे हुए हफ्ता-हफ्ता गुजर जाता है .

अधिकांश परिवारों में बच्चे की आमद बिना किसी ठोस प्लानिंग के होती है ,जहाँ माँ-बाप सब कुछ उपरवाले के भरोसे छोड़ देते है , बच्चे के ग्रेजुएट होने तक भी माँ-बाप को पता नहीं होता कि बेटा ज़िन्दगी किस तरह गुजारेगा, जीवनयापन के क्या साधन होंगे और फिर भी माँ-बाप नसीब में सिर्फ सुख ही लिखते है !!

बच्चे पैदा करना और उन्हें संस्कारों की, ज़िदगी की समझ देने की बजाय आदर्शों की खुराक दे दी जाती है ,रटे-रटाये जुमले याद करवा दिए जाते है कि भाग्य भगवान लिखता है , सुख और दुःख तो भगवान के बनाये हुए रात और दिन जैसे है ,माँ-बाप बेहतर होते है ,यही बेहतरी अधिकांश सामूहिक परिवारों में शादी के दुसरे-तीसरे साल बिखर जाती है . और भगवान और भाग्य के नाम पर उनको गैर-जिम्मेदार बनाया जाता है !!

कृपया नई पीढ़ी को इन बेवकूफी भरे जुमलों से ना बहकाये उसे नए ज़माने की नई हवा में सांस लेने दीजिये ,नए तरीके से चीज़ों को सोचना और समझना सीखने दीजिये .

मुझे पता है मैंने एक विवादित मुद्दे को उठाया है हो सकता है कुछ को ये नागवार गुजरे उनसे आग्रह सिर्फ इतना है कि भावुकता भरा जवाब न देकर अगर भौतिकता भरा जवाब दे तो बेहतर होगा .
- सुबोध
 






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23.  ज़िंदगी  – एक नज़रिया  

 कुछ ऐसे शानदार दोस्त जिनके बारे में कल्पना तक न की थी कि ज़िन्दगी में कभी बिछुड़ जाएंगे, होली दिवाली भी याद न करे तो उनके ख्याल से ही सारी खुशियां दर्द में बदल जाती है- सब कुछ पाकर भी कुछ भी न बचा पाने का दर्द , संबंधों को अपनी आँखों के सामने मरते हुए देखने का दर्द , जानी पहचानी रूह में उतरती आवाज़ों को खो देने का दर्द !!

उफ़ ! ये दर्द ,ये खामोशी ,ये चाहत ,ये कशमकश , ये लम्हों को जीने की आग सिर्फ मेरे सीने में धड़क रही है या उस तरफ भी कोई तड़फ ज़िंदा है ?

क्या मैं मेरे गुरुर को,मेरे अहंकार को ,मेरी ईगो को ,मेरे घमंड को अपनी पूरी नकारात्मकता के साथ छोड़कर मोबाइल पर उसके नंबर डायल कर सकता हूँ?

अगर " हाँ " तो करता क्यों नहीं ?

अगर " नहीं " तो झूठे विलाप , झूठे प्रपंच और एक नकाब को क्यों ढ़ो रहा हूँ ?

हे मेरे अराध्य ! मुझे इतनी शक्ति दो कि मैं किसी और में दोष न देखुं और अपने दोष स्वीकार कर सकूँ ,सुधार सकूँ !!!!
- सुबोध , २५ अक्टूबर, २०१४




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22 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया  

तुम्हारी आज की बर्बादी कल किये गए कार्यों का परिणाम है ,तुम्हारी कामचोरी ,तुम्हारे गलत निर्णय ,आधी-अधूरी सोच और सबसे बड़ा एक गलत चुनाव जो परिणाम दे सकता है वही तुम्हे मिला है ! अब तो जागो , अब तो समझो,ये मत कहो दिवाली ख़राब थी ,दिवाली ख़राब नहीं थी बल्कि कुछ और ख़राब था ; उसे समझो ,गलती स्वीकार करो ,जिम्मेदारी लो और अपनी अगली दिवाली खूबसूरत करो !
मेरी निगाह में इससे बड़ी शुभकामना तुम्हारे लिए नहीं हो सकती !!!
सुबोध- २४ अक्टूबर,२०१४
 




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21 . ज़िंदगी  – एक नज़रिया   


विश्वासघात वहां होता है जहाँ विश्वास होता है ,दुश्मनो के साथ पता होता है कि वार हो सकता है तो हमारी मानसिकता जाने-अनजाने चौकन्नी रहती है लेकिन अपनों के बीच हम खुद को सेफ महसूस करते है और सुरक्षा के प्रति लापरवाह हो जाते है और यही हमारे लिए घातक होती है.
- सुबोध
 



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20 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया  

मध्यमवर्गीय बुजुर्ग पीढ़ी औद्योगिक युग के संस्कार और तकरीबन मज़दूरों वाली स्थिति से गुजरी है और वो अपनी पीड़ा आज की पीढ़ी को देना चाहती है कि ज़िन्दगी आसान नहीं है ,बड़े पापड़ बेलने पड़ते है,बड़ी मेहनत करनी पड़ती है ,दिन-रात एक करते है तो दो वक्त की रोटी जुटा पाते है .सारी दुश्वारियां,सारी मुसीबतें उनकी जुबां पर होती है लेकिन वे शायद समझ नहीं पाते है कि आज का युग पहलेवाला नहीं है ,आज बैलगाड़ी की जगह गाड़ियां आ गई है ,लालटेन की रोशनी में टिमटिमानेवाली रातें रोशनी से जगमगाती है .उनका वक़्त ,उनकी सोच,उनके साधन सब कुछ बदल गया है ,आज सूचना क्रांति के युग में पैसे पेड़ पर नहीं लगते वाली कहावत गलत हो गई है अब इस युग में पैसे पेड़ पर लगते है ,बस लगाने की काबिलियत और ज़ज्बा होना चाहिए .
मानवीय मूल्य उस युग में भी कीमती थे लेकिन उस युग में ईमानदारी और संस्कारों वाली जनरेशन का आपसी कम्पीटीशन होने की वजह से सफलता के उतने मौके नहीं थे ,लेकिन आज की पीढ़ी में ज्यादातर मूल्यहीन और क्विक फिक्स वाली मानसिकता के लोग होने की वजह से सफलता के चांस बहुत-बहुत ज्यादा है बशर्ते आप टुच्ची मानसिकता वाले न हो और अपने उद्देश्यों के लिए समर्पित हो !!
- सुबोध




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19 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया  


जानकारी का ताल्लुक उम्र से होता है ऐसा सोचनेवाले पाषाण युग के बचे हुए अवशेष है क्योंकि तब ज़िन्दगी और गुजरने वाली घटनाये प्रसारित करने के साधन नहीं थे ,आज सूचनाएं अबाध गति से हवाओं में तैरती रहती है और ज़रूरतमंद अगर टेक्नोलॉजी का सहारा लेता है तो स्थिति क्या होगी आप खुद ही समझ सकते है ,18 साल का लड़का 60 साल के बुजुर्ग पर सूचनाओं के मामले में भारी पड़ता है .

बुजुर्ग पीढ़ी के पास नयी पीढ़ी पर हावी होने के अमूनन दो तरीके होते थे ( शब्दों पर गौर करें "थे")

1 . बुजुर्ग पीढ़ी ज्यादा उम्रदराज है और इस नाते ज्यादा अनुभवी है .

2 . बुजुर्ग पीढ़ी ज्यादा कमाती है या उसने ज्यादा जोड़ रखा है .

आइये उनके दोनों तर्कों को समझ लेवे.

1 जैसाकि मैंने कहा है आज के ज़माने में ये कहना कि उम्र ज्यादा होने से आप ज्यादा जानकार है सत्य नहीं है ,माउस के एक क्लिक पर आपने अपनी पूरी ज़िन्दगी में जो जानकारी इक्कठा की है वो सारी बल्कि उससे ज्यादा जानकारी हाज़िर हो जाती है ! और उम्र होने के नाते आप अनुभवी है तो मैं कहना चाहूंगा कि अनुभव बिलकुल व्यक्तिगत क्रिया है - बिलकुल आस्था की तरह कि सालो-साल पूजा करनेवाला मंदिर का पुजारी कोरा ही रह जाता है और कभी कभार मंदिर के सामने से गुजरनेवाला भक्त प्रभु को पा जाता है . 55 साल का SHO जिन धाराओं के बारे में नहीं जानता उसी का 18 साल का लड़का नेट पर बैठता है और उन धाराओं का पूरा ब्यौरा बता देता है .

2 . 18 साल का लड़का एक START UP शुरू करता है लाइक माइंडेड ग्रुप्स और आधुनिक साधनों के दम पर डेढ़ से दो साल में अपने पिता से ज्यादा कमा कर अपनी काबिलियत साबित कर देता है .

बुजुर्ग पीढ़ी अपने अनुभव और कमाई के दम पर नयी पीढ़ी पर अगर हावी होना चाहती है तो निश्चित ही वो एक गलत राह पर है और यही शायद पारिवारिक विघटन और पिता-पुत्र के बीच के तनाव की सबसे बड़ी वजह है . भौतिकता के दम पर नयी पीढ़ी पर हावी होना आज संभव नहीं है क्योंकि आजका युग सूचना-प्रधान युग है और इस युग में विजेता वही है जिसने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि उसके पास ज्यादा सटीक और शीघ्र सूचना पहुंचे और वो इन सुचनों का प्रयोग अपने हित में कर सके .और ये व्यवस्था कोई भी खुले दिमाग का समझदार टेक्नोसेवी कर सकता है .

नयी पीढ़ी पर बुजुर्ग पीढ़ी सिर्फ अपने प्रेम ,अपने स्नेह,अपने वात्सल्य के दम पर हावी हो सकती है और मजे की बात ये है कि ये भावनाए हक़ नहीं मांगती ये सिर्फ देना जानती है !!
- सुबोध
 

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18 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया  

 उस से मेरी चंद दिनों की मुलाकात , साथ उठना, साथ बैठना , घुल-मिल कर बातें करना ,हंसी -मजाक करना इतना नागवार क्यों गुजर रहा है दुनिया पर कि मुझसे उसका सम्बन्ध क्या है ,पुछा जा रहा है !
ये दुनिया सहज होकर क्यों नहीं सोचती ,इसे क्या बीमारी है कि हर साधारण हरकत को कोम्प्लिकेटेड तरीके से सोचे-समझे !
क्या किसी से बात करने,हंसी-मजाक करने के लिए सम्बन्ध होना ज़रूरी है ?
क्या इतना काफी नहीं है कि मैं भी इंसान हूँ और वो भी इंसान है ,एक इंसान से दूसरे इंसान का क्या इंसानियत का सम्बन्ध नहीं हो सकता ?
बिलकुल वैसा ही सम्बन्ध कि किसी अंधे को आपने हाथ पकड़ कर सड़क पार करवाई ,किसी अपंग की कोई मदद की .
अपंगता क्या सिर्फ शारीरिक होती है मानसिक नहीं ?
अकेलापन दुनिया की सबसे खतरनाक पहेली है और इसका शिकार दुनिया का सबसे बड़ा अपंग .
अगर किसी मानसिक अपंग की अपंगता दूर करने के लिए मैंने उसका अकेलापन दूर कर दिया ,उसके साथ कुछ पल बिता लिए तो क्या गलत किया .
और यहाँ दुनिया सम्बन्धो की तलाश कर रही है !!!!
- सुबोध




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17 . ज़िंदगी  – एक नज़रिया  

बड़ी अजीब है ख्वाइश पहचान की , घर-बाहर ,आस-पास,गाँव-शहर ,दूर-नज़दीक,देश-दुनिया हर तरफ हर शख्श एक जंग लड़ रहा है . अपनी पहचान की जंग !

कुछ अपनी पहचान दूसरों को उधार देकर बड़े ,बहुत बड़े बन जाते है , कुछ लोग दूसरों की पहचान उधार लेकर खुद को एक नाम देते है ,खुद की नज़र में बड़े बन जाते है उन्हें मुगालता ये भी होता है कि हम किंग मेकर है .

कुछ लोग चंद सिक्कों में खुद के हुनर को बेच देते है और उस हुनर को खरीददार की पहचान करार देते है , कुछ दूसरों की मेहनत को अपनी पहचान बना लेते है .

कुछ पैसों के बदले में या किसी दबाब में दूसरों को पहचानना बंद कर देते है और कुछ अनजान की पहचान भी क़ुबूल करते है .
क्या निराले खेल है पहचान के !

कुछ पहचान के लिए अजीब से कपडे पहनते है ,कुछ अजीब सी हरकतें करते है ,कुछ गाने का रिकॉर्ड बनाते है ,कुछ नाचने का ,कुछ बार -बार चुनाव लड़ने का ,कोई पढ़ने का !!जितने शख्स उतने तरीके .

चाहता हर कोई है कि मेरी पहचान हो ,तरीका चाहे अजीब हो या फिर ऐसा कुछ करना पड़े कि लोग कहे वाह भाई,वाह या गज़ब या बहुत खूब !!!

जंग पहचान की जो है !!!

सुबोध - अक्टूबर ३, २०१४

  
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16 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया  


 अन्जान लोगों को की हुई मदद को उसने इस तरह लौटाया
कि मुसीबत के वक्त मेरे साथ जो खड़ा था उसे मैं ठीक से जानता भी नहीं था
शायद इसे ही उसकी रहमत कहते है ,शायद यही इंसानियत होती है !!!
सुबोध - २४ सितम्बर, २०१४





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15 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया  


इस मुकाबले में
तुम्हे आगे बढ़ने की जगह दी है
और मैं पीछे हटा हूँ
इसका मतलब ये नहीं है कि
मैं हार रहा हूँ
मैं तो सिर्फ उस पोजीशन में आ रहा हूँ
जहाँ से तुम पर निशाना साध सकूँ
और विजेता बन सकूँ !!!!
सुबोध- २३ सितम्बर, २०१४
 




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14 . ज़िंदगी  – एक नज़रिया   

जो सपने आपकी नींद उड़ा देते है और आपकी बेहतरीन जानकारी के अनुसार वो सही है तो उनकी आवाज़ सुनिए और उस रास्ते पर बढ़िए जो रास्ता वो बता रहे है .
हो सकता है आपको पहली बार में सफलता न मिले तो उस अस्थायी असफलता की परवाह मत कीजिये क्योंकि सफलता के महल तक पहुंचने के लिए हमेशा उस दरवाज़े से गुजरना पड़ता है जिस पर "असफलता" लिखा हुआ होता है. आपकी ताकत, आपका हौंसला हमेशा असफलताओं से बड़ा होता है !!
और हो सकता है जो काम आप कर रहे है उसके लिए आपको आलोचना सहन करनी पड़े तो उन आलोचकों की परवाह मत कीजिये जिन्होंने हर महान आदमी को अपनी कटुता से आहत किया होता है , अगर वो महान शख़्शियतें उनकी आलोचना सुनकर रुक जाती तो" महान " शब्द ही नहीं होता !
खुद पर भरोसा रखिये और अपने उस ख्वाब को साकार कीजिये जिसके लिए आपके अंदर ज्वाला धधक रही है !!!!
सुबोध- २३ सितम्बर,२०१४













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13 . ज़िंदगी  – एक नज़रिया  

धन्यवाद, उन दोस्तों का जिन्होंने मुझे अपनी गलतियों से रूबरू करवाया ,बिना इस बात से डरे कि वो मेरी दोस्ती खो सकते है !!
पक्के दोस्त अच्छे हो ,सच्चे हो ये ज़रूरी नहीं !!
पक्के दोस्त आपकी हर बात का समर्थन करेंगे लेकिन अच्छे और सच्चे दोस्त आपका सिर्फ वही समर्थन करेंगे जहाँ उन्हें आपकी भलाई नज़र आएगी.
दोस्ती जब चुनने की बारी आये तो पक्के नहीं अच्छे और सच्चे दोस्त चुनिए !
और हाँ, ध्यान रखियेगा आपके अच्छे और सच्चे दोस्त आपकी दोस्ती की परवाह नहीं करेंगे बल्कि उन्हें आपकी अच्छाई की, आपकी भलाई की परवाह होगी , इस दोस्ती के मूल में " दोस्ती जाए लेकिन दोस्त रहे " वाली भावना होती है क्योंकि उन्हें भरोसा होता है कि जिस दिन आप अपना अच्छा और बुरा समझने लगेंगे उस दिन दूरियां ख़त्म करकर वापिस लौट आएंगे !!!
सुबोध - १९ सितम्बर,२०१४













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12 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया  


ज़िन्दगी हमेशा वादा करती है कि मैं कभी भी आसान नहीं रहूंगी .मैं तुम्हारे सुख में चुनौती बनकर उभरूंगी कि आओ मुझे बरकरार रखो ,और तुम्हारे दुःख में तो संघर्षपूर्ण रहूंगी ही .

अब ये तुम पर है कि तुम आलोचना,हताशा ,निराशा ,पराजय को अपनी ताकत बनाकर उभरते हो -एक ज्वालमुखी की तरह या इन नकारात्मक भावों के नीचे दबकर अपने आप को बर्बाद कर लेते हो !!!

चाकू से सब्ज़ी भी काटी जाती है और आत्महत्या करने के लिए हाथ की नसें भी !

फर्क इस्तेमाल करने वाले की सोच और ताकत में होता है !!!!
सुबोध- १८ सितम्बर, २०१४
 



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11 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया  

काश!!
कुछ अनलिखे शब्दों को हम पहचान पाते !!!
मीरा ने पहचाना ,पंचतत्व में विलीन हो गई !!
हीर ने पहचाना फ़ना हो गई !!
माँ ने पहचाना वृद्धाश्रम पहुँच गई !!
प्रकृति ने पहचाना , रौद्र हो गई !!!!
और...
और...
और....
एक लम्बी लिस्ट और हम भावनाहीन इंसान !!
शब्दों को ओढ़ते है, शब्दों को बिछाते है,शब्दों को पहनते है
लेकिन शब्दों का अनलिखा नहीं समझते !!!!
 सुबोध- १७ सितम्बर , २०१४  



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10.  ज़िंदगी  – एक नज़रिया  



कुछ लम्हे ज़िन्दगी में हताशा देते है और हम उन नकारात्मक लम्हों के बहाव में बहते हुए खुद को नकारा मान लेते है ,हार स्वीकार कर लेते है ,सुनहरी ख्वाबों से खुद को दरकिनार कर लेते है . क्या उन लम्हों पर हम कुछ अलग तरीके से प्रतिक्रिया नहीं दे सकते ?

एक आईना जब टूटता है कुछ कहते है इसे कचरे में फेंक दो और कुछ कहते है आओ एक नया रॉक गार्डन बनाये !!!!

परिस्थितियां आपके बस में नहीं है लेकिन परिस्थितियों पर आप क्या प्रतिक्रिया करते है यह पूरी तरह आपके बस में है .

सुबोध- १७ सितम्बर , २०१४




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9 . ज़िंदगी  – एक नज़रिया   

मैं गिर रहा हूँ बार-बार
उस मासूम बच्चे की मानिंद जो चलना सीखने के वक्त गिरता है ,उठता है,कदम बढ़ाता है ,गिरता है, उठता है , कदम बढ़ाता है और अंततः चलना सीख जाता है ,तब उस बच्चे को कोई नहीं कहता कि ये गिर रहा है बल्कि कहते है कि ये चलना सीख रहा है !!!
आज जब मैं गिर रहा हूँ बार-बार
लोग मुझे हारा हुआ ,चुका हुआ ,पराजित क्यों मान रहे है ?
  सुबोध- १६ सितम्बर ,२०१४ 


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8 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया  

महंगाई का असर जिंसों पर होता है ,वस्तुओं पर होता है ,चीज़ों पर होता है ; भावनाओं पर नहीं,जज्बातों पर नहीं -अगर उन पर भी महंगाई का असर होता तो क्या-क्या होता सोचकर रूह काँपने लगती है !!! या रब तू बड़ा रहम दिल है इंसान की मजबूरियां भी समझता है और नादानियां भी !!!
सुबोध- १५ सितम्बर, २०१४






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7 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया  

हम प्यार को हमेशा व्यापार क्यों बनाते है ? प्यार के बदले प्यार मिलेगा ये सोचकर प्यार करना खुद को तराजू के एक पलड़े में रखना नहीं तो क्या है ? कि आओ मैं तिज़ारत के लिए हाज़िर हूँ !!! कहते है प्यार किया नहीं जाता , हो जाता है - तो यहाँ तो हम सायास भाव-ताव कर रहे है कि मैं प्यार नामक शब्द तुम को दे रहा हूँ तुम बदले में क्या दोगे ? क्या " प्यार हो जाता है " कहावत गलत है , अब प्यार हो गया बदले में प्यार नहीं मिला तो ? क्या तराजू के एक पलड़े में रखा अपना मन वापिस उठा लोगे ? प्यार तो स्नेह का नाम है, त्याग का नाम है ,खुद की बर्बादी के बाद भी किसी को आबाद करने की चाहत का नाम है , उस बंदगी का नाम है जहाँ " मैं " पिघल कर बह जाता है , बह कर "तुम" में समां जाता है फिर उस से कोई फरक नहीं पड़ता वो तुम मेरा है या नहीं है !!
- सुबोध
 




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6 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया


अगर आप गहराई में जाकर सोचे तो आप समझ पाएंगे कि हर आज़ादी खुद में एक बंधन ( इसे आप जिम्मेदारी पढ़े) होती है यह एक बंधन ही है कि आप अपनी संतान का भरण -पोषण कर पाते है तभी तो वो आपको संतान कहने का हक़ देती है .
यह भरण -पोषण एक बंधन है जिसके एवज में आपको संतान कहने का हक़ दिया गया है वो आपकी आज़ादी है - ये संसार के हर रिश्ते पर लागू होता है - इंसान और पैसे के रिश्ते पर भी !!!
- सुबोध




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5.  ज़िंदगी  – एक नज़रिया  

शांति जिस कीमत पर भी मिले सस्ती होती है !!! हो सकता है हम आज इसे महसूस न करें , लेकिन जब जीवन में दौड़ते-दौड़ते थक जाएंगे , सत्ता हमारे हाथ से निकल कर नई पीढ़ी के हाथ में आ जाएगी और हमारे पास वक्त ही वक्त होगा - अपनी गुजरी यादों में जीने का ,की गई गलतियों को महसूसने का , पैसे के पीछे भागने का, थोपी हुई व्यस्तताओं के बारे में सोचने का , तब शायद , हाँ शायद तब हमे शांति अनमोल लगे ..हमे महसूस हो जिस के पीछे हम भागे क्या वो इतना महत्त्वपूर्ण था कि हमने पूरी ज़िन्दगी में अशांति पाल ली ..
सुबोध - ५ सितम्बर, २०१४
 



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4 . ज़िंदगी  – एक नज़रिया  

तुम्हारा स्पर्श मुझे सहज कर देता है मेरा सारा गुस्सा, मेरी सारी नाराजगी काफूर हो जाती है ...ये कौनसी भाषा है कि गुस्सा हुए बेटे/ बेटी को सीने से लगाता हूँ और वे शांत हो जाते है , जाने कुछ हुआ ही नहीं हो !!! शब्दों से पैदा हुए विवाद / गलतफहमियां एक स्पर्श से दूर हो जाती है ....
सुबोध - ५ सितम्बर, २०१४

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3 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया  
 सफलता

सफलता  के   लिए  असफलता  उतनी ही ज़रूरी है  जितनी रौशनी के  लिए अँधेरा . असफलता सही मायने में हार  तब बनती है जब व्यक्ति अपनी असफलता से सबक न लेकर सफलता के लिए प्रयास  करना ही बंद कर देता है . हार गिरना नहीं है,गिरने के बाद उठने की कोशिश न करना है . अगर बच्चा गिरेगा नहीं तो खड़ा होना नहीं सीख पायेगा , जिस तरह खड़ा होना सीखने के लिए गिरना पहली शर्त है उसी तरह सफलता के लिए असफलता पहली शर्त है.

सफलता की पहली सीढ़ी यह है कि हमें ज़िन्दगी के हर पल को एक अवसर की तरह लपकना होगा , उसे सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए अपना सब कुछ झोंक देना होगा . जब तक हमारे कर्म में उत्कृष्टता नहीं आती तब तक हमें छोटी सफलता ही मिल सकती है ,बड़ी सफलता के लिए हमें उत्कृष्ट होना ही पड़ेगा ;निरंतर उत्कृष्ट क्योंकि ज़िन्दगी में रिहर्सल   नहीं हुआ करते .

सफलता की यात्रा में उतार-चढ़ाव और चुनौतियाँ हमेशा विद्यमान रहती है . इस यात्रा में मंज़िल नहीं पड़ाव होते है और पड़ावों पर बसेरा नहीं बनाया जाता . चूँकि ये यात्रा सतत है इसलिए उतार-चढाव और चुनौतियों को इसका ( सफलता का) हिस्सा समझने की सहजता अपनाएंगे तो हम सही मायने में ज़िन्दगी जिएंगे .

सुबोध  ३० जुलाई २००७ 


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2 .  ज़िंदगी  – एक नज़रिया
विकल्परहित विश्वास
एक दिन आपको 1440 मिनट देता है. इन मिनटों में आप कितने अवसरों का निर्माण कर पाते है , आपकी सफलता इसी पर निर्भर है.

ज़िन्दगी आपको गुज़ारने के लिए नहीं जीने के लिए मिली है- एक सफल जीवन जीने के लिए . सफलता मंज़िल नहीं , यात्रा है- निरंतर जारी रहने वाली यात्रा ; जिसमे जोखिम और आकर्षण होता है,संघर्ष होता है- हर पल.
समन्दर में बड़ी मछली को तेज तैरना पड़ता है छोटी मछली को खाने के लिए. अगर वो तेज नहीं तैरेगी तो भूखी मर जाएगी . और छोटी मछली को तेज तैरना
पड़ता है बड़ी मछली से बचने के लिए नहीं तो बड़ी मछली उसे खा जाएगी .
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप बड़ी मछली है या छोटी मछली . तैरने में तेजी लाना आपकी ज़रुरत भी है और मज़बूरी भी क्योंकि इसी पर आपकी ज़िन्दगी निर्भर है.

आप चाहकर भी उतना तेज नहीं दौड़ पाते जितना कुत्ता आपको दौड़ा लेता है या चाहकर भी उतना तेज नहीं तैर पाते जितना शार्क द्वारा पीछा करने पर तैरते है.अनंत संभावनाएं आपमें है . विश्वास कीजिये - विकल्परहित होने पर आप वो सब हासिल कर सकते है जो चाहते है.आपको अपने व्यक्तित्व से शंका रुपी गर्द
झाड़नी है , आप सक्षम है - विश्वास कीजिये

सुबोध
 
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1 .   ज़िंदगी  – एक नज़रिया

विकल्प

ज़िन्दगी आपसे कोई वादा नहीं करती सिवाय इसके कि यह चुनौतीपूर्ण होगी.यह विकल्प आपके पास है कि आप रोने का चुनाव करें या हँसने का , गाली का चुनाव करें या कविता का,बुराई का चुनाव करें या तारीफ़ का,परिस्थितियों द्वारा नियंत्रित होने का चुनाव करें या परिस्थितियों को नियंत्रित करने का.

स्तिथियाँ बिना प्रयासों के कभी अनुकूल नहीं होती, उनको अनुकूल बनाना विकल्प है,जिसे आप स्वीकारे या नकारे यह आपकी स्वतंत्रता है. यदि आप स्थितियों को अनुकूल बनाने का विकल्प चुनते है तो आप वह बनेंगे जो आप बनना चाहते हैं , नहीं तो वह बनेंगे जो शायद आप बनना नहीं चाहें - बनेंगे कुछ न कुछ जरूर क्योंकि घटनाएँ बिना परिवर्तन किये नहीं गुज़रती.

सौभाग्य या दुर्भाग्य आप पर निर्भर है . अगर आप आज आराम का विकल्प चुनते है तो कल आपके दुर्भाग्य का सूरज उगेगा यानि आज का सुख , कल का दुःख और मेहनत का विकल्प चुनते हैं तो हो सकता है आज आपके हाथों में छाले पड़े, जिनमें असह्य पीड़ा हो रही हो लेकिन यह कल आपका सौभाग्य बनेगा यानि आज का दुःख कल का सुख.

यह आप पर निर्भर है आप कौनसा विकल्प चुनते है , कृपया दूसरों को दोष न दें.
सुबोध


Photo: विकल्प

ज़िन्दगी आपसे कोई वादा नहीं करती सिवाय इसके कि यह चुनौतीपूर्ण  होगी.यह विकल्प आपके पास है कि आप रोने का चुनाव करें या हँसने का , गाली का चुनाव करें या कविता का,बुराई का चुनाव करें या तारीफ़ का,परिस्थितियों द्वारा नियंत्रित होने का चुनाव करें या परिस्थितियों को नियंत्रित करने का.

स्तिथियाँ बिना प्रयासों के कभी अनुकूल नहीं होती, उनको अनुकूल बनाना विकल्प है,जिसे आप स्वीकारे या नकारे यह आपकी स्वतंत्रता है. यदि आप स्थितियों को अनुकूल बनाने का विकल्प चुनते है तो आप वह बनेंगे जो आप बनना चाहते हैं , नहीं तो वह बनेंगे जो शायद आप बनना नहीं चाहें - बनेंगे कुछ न कुछ जरूर क्योंकि घटनाएँ बिना परिवर्तन किये नहीं गुज़रती.

सौभाग्य या दुर्भाग्य आप पर निर्भर है . अगर आप आज आराम का विकल्प चुनते है तो कल आपके दुर्भाग्य का सूरज उगेगा यानि आज का सुख , कल का दुःख और मेहनत का विकल्प चुनते हैं तो हो सकता है आज आपके हाथों में छाले पड़े, जिनमें असह्य पीड़ा हो रही हो लेकिन यह कल आपका सौभाग्य बनेगा यानि आज का दुःख कल का सुख. 

यह आप पर निर्भर है आप कौनसा विकल्प चुनते है , कृपया दूसरों को दोष न दें.
सुबोध

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