subodh

subodh

Friday 31 October 2014

29. पैसा बोलता है ...


कोई भी समस्या अपने साथ अवसर लेकर आती है , अमूनन लोग समस्या का एक हिस्सा देखते है वो हिस्सा खुद में ही एक समस्या होता है ,उस समस्या का एक व्यवहारिक हल तलाशना और उसका व्यावसायिक उपयोग कर पाना पैसा पैदा करता है यानी समस्याओं को हल करने से पैसा मिलता है .अगर समस्या छोटे स्तर पर हल की जाती है तो कम पैसे मिलते हैं  और बड़े स्तर पर हल की जाती है तो भरपूर पैसे मिलते हैं  .
ध्यान देवे गरीब मानसिकता हमेशा समस्याओं का रोना रोती रहती है 
और
अमीर मानसिकता समस्या का व्यवहारिक हल देखकर उसका व्यावसायिक उपयोग करती है .
यानि अमीर समस्या से बड़े होते है और गरीब समस्या से छोटे ,अमीर समस्या निवारक होते है और गरीब समस्या के उपभोक्ता. 
आइये इसे एक कहानी  से समझे .
एक देहात में कई   किसान रहते थे ,सारे  ही परेशान थे कि चूहे उनके गोदाम में पड़ा हुआ अनाज खा जाते थे .
रामप्रसाद नामक किसान अपने किसी शहरी रिश्तेदार से इसकी चर्चा करता है जो कि पढ़ा -लिखा है और उसकी सलाह से पिंजरों  का इस्तेमाल करता है  और अपने गोदाम में पड़े अनाज को चूहों से बचाता है .
बाकी किसान परेशान है चूहों से .
रामप्रसाद इस समस्या को एक अवसर की तरह इस्तेमाल करता है शहर जाता है और वहां से पिंजरे बनवा कर अपने देहात में लाकर अच्छे-खासे  मुनाफे के साथ बेच देता है  .
रामप्रसाद और बाकी किसानो में फर्क क्या है ,ये सोचे-समझे .

हकीकत में समस्या नाम की कोई चीज़ होती ही नहीं है !!!

एक परिस्थिति जो आपके कम्फर्ट जोन के बाहर होती है  उसे आप समस्या मान लेते है जबकि वो समस्या नहीं एक परिस्थिति है .
इसे एक उदाहरण से समझे . 
आप कल्पना  कीजिये कि आप कक्षा पांच के छात्र है , अब अगर आपको कक्षा दो ,तीन या चार के प्रश्न हल करने को दिए जाते है तो क्या होगा ?
क्या वो आपके लिए समस्या है ? जवाब आप खुद बेहतर जानते है .
अब अगर आपको कक्षा छह ,सात,आठ नौ या उससे ऊपर के प्रश्न हल करने के लिए दिए जाते है तो क्या होगा ?
क्या ये आपके लिए समस्या नहीं है ?
दोनों ही स्थितियों में सवाल पूछना सिर्फ एक परिस्थिति भर है , आपकी क्षमता  , आपकी  ताकत  , आपका दायरा अगर सवालों से छोटा है तो सवाल आपके लिए समस्या है अन्यथा वे आपके लिए समस्या ही नहीं है .

मुद्दे की बात ये है कि सवाल या परिस्थिति समस्या नहीं है ,समस्या आपका स्वयं का आकार है . अगर कोई भी परिस्थिति आपकी क्षमता से, आपकेँ आकार से बड़ी है तो वो आपकेँ लिए समस्या है और अगर छोटी है तो वो आपकेँ लिए समस्या है ही नहीं.
इसे अगर अलग तरीके से कहे तो समस्या आपका छोटा होना है. अगर आप छोटे नहीं है तो कोई भी परिस्थिति आपके लिए समस्या नहीं है. 

अब कुछ प्रश्नों  का जवाब देवे ,

देहात में चूहों का होना क्या है ?
रामप्रसाद नाम के किसान के लिए शुरू में चूहे समस्या क्यों थे ?
अंत में रामप्रसाद नाम के किसान के  लिए चूहे समस्या क्यों नहीं रहे ?
क्या आप अपनी किसी भी समस्या के साथ ' रामप्रसाद ' जैसा कर सकते है ?
कृपया गौर करें छोटी से छोटी परिस्थिति भी कुछ लोगों के लिए समस्या होती है और रहेगी ,हर क्षेत्र में समस्याओं का अम्बार है ज़रुरत है उन्हें ढंग से चिन्हित करने की, उसका व्यवहारिक हल तलाशने की और उस हल का व्यावसायिक उपयोग कर पाने की. 
अमीरी आपका इंतज़ार कर रही है !!! 

सुबोध 

Monday 13 October 2014

28. पैसा बोलता है ...

राय देना तकरीबन हर इंसान का प्रिय शगल होता है ,आपको और कुछ मिले न मिले लेकिन राय जितनी मांगेंगे उस से ज्यादा मिलेगी .राय मांगने पर एक अनाड़ी आदमी डॉक्टर ,मेकैनिक ,वकील,नेता, पुलिस अधिकारी वगैरह सब कुछ बन जाता है और ऐसी-ऐसी राय देता है कि आपकी समस्या का समाधान तुरंत हो जाता है ,तो अगर आप मेरी बात समझ रहे है तो कृपया राय लेने से पहले देख लेवे आप किस से किस विषय पर  किस तरह की राय ले रहे है .

 अमूनन जब कोई बिज़नेस शुरू करना चाहता  है तो जिनसे राय ली जाती है वे जॉब वाली प्रोफाइल से आये हुए लोग होते है ,वे इस बात को समझ ही नहीं पाते कि एक पढ़ा लिखा काबिल इंसान जो अच्छी नौकरी पा सकता है वो नौकरी न करकर  रोड पर धक्का क्यों खाना चाहता है ? ये बिलकुल ऐसी ही सोच है कि जिस काम में रिस्क हो उस काम को नहीं करना चाहिए ,जब ऐसे लोगों से राय मांगी जाती है तो ज़ाहिर सी बात है वे मना ही करेंगे .

अब ये समझे कि वे मना क्यों कर रहे है ?

पहला कारण ये हो सकता है कि वे बहुत ज्यादा सेफ गेम खेलते है चूँकि वे आपके शुभचिंतक है और नहीं चाहते कि असफल होने पर आप किसी पीड़ा से गुजरे .

दूसरा कारण ये हो सकता है कि ज़िन्दगी में कभी उन्होंने " आउट ऑफ़ बॉक्स " जाकर प्रयास किये थे और वे असफल हो गए थे .

तीसरा कारण ये हो सकता है कि उनकी कंडीशनिंग के मुताबिक बिज़नेस करना एक हौवा  है,इसको करना बुराई की और बढ़ना है ,इसमें लोग असफल ज्यादा होते है और कोई सफल भी हो गया तो ज़िन्दगी भर परेशान रहता है .

कृपया जब भी आपको राय लेनी हो तो परिवार या जान-पहिचान के उस व्यक्ति से नहीं लेवे जो उस क्वान्ड्रेंट का नहीं  है  ,अगर आपको बिज़नेस करना है तो राय किसी बिजनेसमैन  से लेवे उस बिजनेसमैन  से जो सफल हो चूका है क्योंकि वही आपको सफलता पाने के सही तरीके बता सकता है .आपको बिज़नेस शुरू करना है और आप किसी अनप्रोफेशनल पहलवान से जाकर राय करते है तो क्या जवाब होगा और वो जवाब कितना जायज़ होगा सोचे-समझे . इसी तरह से किसी असफल व्यवसायी से राय लेना खुद को नकारात्मक करना है .

जैसा की मैंने अपनी पुरानी पोस्ट में लिखा था आपके सबसे बेहतरीन दोस्त" क्या",  "क्यों", "कब"," कैसे", "कहाँ" है .जब भी आपको कोई उलझन हो इन दोस्तों से उस विषय में बात करें ये आपको रास्ता दिखाएंगे .
जैसे आपको व्यवसाय करने से  आपका शुभचिंतक मना करता है तो उससे पूछे मुझे व्यवसाय "क्यों" नहीं करना चाहिए ?

वो जो भी कारण बताता है उसके बाद वापिस अपने किसी दोस्त को आएगे कर दीजिये ,और तब तक आगे करते रहिये जब तक आप निर्णय की स्थिति में नहीं पहुँच पाते !

आपको देखकर आश्चर्य होगा कि उनकी राय आपके  कठोर सवालों का सामना नहीं कर पा रही  है और वो खिसिया रहे है !

आप सावधान हो जाइये ये तो एक क्वान्ड्रेंट वाले का दुसरे क्वान्ड्रेंट वाले से राय करना है और उसका राय न मिलने का किस्सा है यहाँ तो एक क्वान्ड्रेंट वाले का उसी क्वान्ड्रेंट वाले से राय न मिल पाना भी आम है  जैसे एक रनिंग सेटल्ड बिजनेसमैन से या कॉर्पोरेट हाउस के बड़े शेयर होल्डर से  अगर किसी स्टार्टअप के बारे में पुछा जाये तो उसे भी" हाँ" करना समझ में नहीं आएगा !! 

क्यों ?

क्योंकि आखिरकार वे सड़क के दुसरे छोर पर खड़े है !!!!

ऐसी स्थिति में अपने विवेक का उपयोग करें और अपने बेहतरीन दोस्तों ( 5 Q ) पर भरोसा करें ,वे आपको तब तक गलत नहीं होने देंगे जब तक आप खुद गलत न होना चाहे.

सुबोध 

Saturday 4 October 2014

27. पैसा बोलता है ...

अमूनन लोगों को अपनी ज़िन्दगी में  पैसे को लेकर उसकी प्राथमिकता का क्रम पता नहीं होता .
हो सकता है आपको सुनने में ये थोड़ा अजीब लगे ,लेकिन आप प्राथमिकता क्रम बनाये तो आपको पता चलेगा कि आप कंफ्यूज ( Confuse ) है कि किसको ऊपर रखूं और किसको नीचे.  कृपया इस क्रम को बनाये और ईमानदारी से बनाये !
अगर पैसा आपकी प्राथमिकता के तीसरे क्रम में आ रहा है तो चौकन्ने हो जाए आप खतरनाक स्थिति में है !
मेरा ये वाक्य पढ़कर अगर आप क्रम को बदल रहे है तो कृपया इस बात को समझ लेवे इस से आपको कोई फायदा होने वाला नहीं है क्योंकि जब तक आपकी मानसिकता में ये प्राथमिकता क्रम में नहीं बदलता आप अपने प्रयासों में बदलाव नहीं कर पाएंगे .
आप सोच रहे होंगे मैंने तीसरा क्रम क्यों लिखा ?
पैसा आपके पहले या दूसरे क्रम में है ,वहां तक ठीक है अगर उसके बाद वाले क्रम में है तो ध्यान देवे आपका पैसे से डायरेक्ट सम्बन्ध नहीं है बल्कि उसके बीच में दो और पड़ाव है जो आपकी ऊर्जा को सोख सकते है !
मान लीजिये आपके पहले क्रम में परिवार को क्वालिटी टाइम ( Quality Time ) देना है ,दूसरे क्रम में मनोरंजन का कोई साधन है या पूजा-पाठ है या N G O के लिए कार्य करना है ,उसके बाद पैसा है तो क्या होगा ?
अगर आप बहुत ज्यादा ऊर्जावान है तो भी जाहिर सी बात है आपकी ऊर्जा इन्ही दो प्राथमिकताओं में तुलनात्मक रूप से ज्यादा वितरित होगी ,अपनी तीसरी प्राथमिकता के लिए आप कितना क्या प्रयास करेंगे, कर पाएंगे ?
आदमी अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार कार्य करता है और किये गए कार्यों के अनुसार ही उसको प्राप्त होता है ,अगर आप परिवार को क्वालिटी टाइम देने का प्रयास करेंगे तो जाहिर सी बात है आप क्वालिटी टाइम देना सीखेंगे और क्वालिटी टाइम देंगे . ( अमूनन 90 % लोग परिवार के साथ वक्त गुजारना,या उन पर पैसा खर्च करना ही क्वालिटी टाइम देना समझते है -उन्हें टाइम और क्वालिटी टाइम का फर्क ही पता नहीं होता !) 
अब अगर पैसा आपकी प्राथमिकता में तीसरे नंबर पर है तो ज़ाहिर सी बात है आप पहले और दूसरे नंबर वाली प्राथमिकता को लेकर ज्यादा उत्सुक रहेंगे और पैसे के प्रयास उसकी प्राथमिकता के अनुरूप ही करेंगे और उसी अनुपात में वो आपको प्राप्त होगा !
अगर आप गरीबी या मध्यम वर्गीय स्तर पर है ,आपको लगता है कि आपकी कमाई कम है तो कृपया अपने पैसे की प्राथमिकता के स्तर को चेक ( Check )करे और उसमे समुचित बदलाव लायें.आप जो चाहेंगे वो आपको मिलेगा बशर्ते आप अपनी प्राथमिकता में स्पष्ट हो और सही तरीके से प्रयास करें .
- सुबोध  

Wednesday 1 October 2014

26. पैसा बोलता है ...

कंडीशनिंग  के शिकार लोग अपनी असफलता के लिए भाग्य को दोष देते है !

संसार के अधिकांश लोग अमीरी और गरीबी को ,सफलता और असफलता को,हार और जीत को  भाग्य का खेल मानते है . वे इतने मासूम होते है कि बस छूटने से लेकर जेब कट जाने तक को किस्मत की  बात मानते है.

क्या आपको नहीं लगता कि  बस का छूटना  टाइम का मिस मैनेजमेंट  है , जेब का कट जाना लापरवाही का नतीजा है ,असफलता अधूरे प्रयासों का परिणाम है, हारना रणनीति के अभाव का फल है ,इसी तरह से गरीबी अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह न  जानने का परिणाम है . भाग्य या किस्मत को दोष देने से आप अपनी जिम्मेदारियों  से बच भर जाते है अपनी चिंतन-प्रक्रिया को एक गलत दिशा दे कर भारमुक्त हो जाते है. 

ये गैर जिम्मेदारी आती कहाँ से है , जो आपको अमीर बनने से , सफल व्यक्ति बनने से रोकती है  ?

इसकी जड़े कहाँ है ,क्या आपने कभी जानने का प्रयास किया ?

सफलता के ऐन नज़दीक पहुँच कर आपका मन बदल जाता है ,आप थकान महसूस करने लगते है, पेड़ को धराशायी करने के लिए सिर्फ एक वार ही और चाहिए था और कुल्हाड़ी उस आखिरी वार से पहले छूटकर घाटी की अतल गहराइयों में समां  जाती है.क्यों होता है ऐसा ? 

एक ही स्कूल से पढ़े-लिखे एक जैसे दिमाग वाले ,एक जैसे स्टेटस वाले दो  दोस्त जब असली ज़िन्दगी की शुरुवात करते है तो एक मीलों आगे निकल जाता है दूसरा  रास्ता कहाँ भटक गया पता ही नहीं चलता ?

अगर बार बार ऐसा ही हो रहा है तो अपनी बचपन की यादें टटोलिये कही वहां तो असफलता के बीज नहीं बोये हुए है ,जो विशाल पेड़ बनकर आपके दिमाग में ठहर गए है .और उम्र पाकर बड़े होने पर वे अब फल देने लगे है !

ये जान लीजिये कि भाग्य और  किस्मत सतत प्रयासों का परिणाम  है ,अगर सतत प्रयासों के बाद भी आपका भाग्य ,आपकी किस्मत आपका साथ नहीं दे रही है तो कहीं कुछ ऐसा है जिसे आप जानते नहीं है ,उसे जानिये .संभव है वो आपकी अतीत की कंडीशनिंग  हो.अगर आपकी कंडीशनिंग गलत हुई है तो उस कंडीशनिंग को जानिये,पहचानिये और वक्त रहते उस से छुटकारा पा लीजिये ;अपनी असफलता  को ,अपनी हार को अपना भाग्य न बनने दीजिये !! 
सुबोध