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पैसा बोलता है ... एक साथ

37 . पैसा बोलता है ...

तुम्हारी हार की वजह , असफलता की वजह तुम्हारा अहंकार है कि मैं सब कुछ जानता हूँ - मैं मानता हूँ तुम बहुत कुछ जानते हो , जवान हो , काबिल हो, नई पीढ़ी से हो, टेक्नोलॉजी कैसे काम करती है, सिस्टम कैसे बनाये जाते है , कैसे चलाये जाते है - सब कुछ जानते हो तुम और इस सब कुछ जानने ने तुम्हे अहंकारी बना दिया है जिसे तुम सब कुछ जानना समझ रहे हो और जिस वजह से तुम्हे अपने ज्ञान का गुरूर है वो सब कुछ जानना तब तुम्हारी हार की पोल खोल देता है जब तुम्हारे बैंक स्टेटमेंट देखे जाते है !!
तुम्हारा सारा ज्ञान किताबी ज्ञान है , सामाजिक ज्ञान है , लफ्फाजी ज्ञान है - इतने वाक्पटु हो तुम , इतने कॉंफिडेंट नज़र आते हो कि किसी को भी भरमा सकते हो , जब मार्केटिंग की बात आती है तो जितनी डिटेल में जाकर तुम चीज़ों को बयां करते हो , तुम पर गर्व होता है , जब सेल्स की बात आती है तो जितने कफिडेन्स से तुम क्लाइंट से बात करते हो और प्रोडक्ट सेल कर देते हो , आश्चर्य होता है और तुम्हारे भविष्य को सिक्योर महसूस करता हूँ लेकिन परेशान तब हो जाता हूँ जब तुम्हारे बैंक स्टेटमेंट देखता हूँ !!
क्या है ऐसा जो तुम नहीं जानते हो जिस वजह से तुम्हे हमेशा क्रेडिट कार्ड के भरोसे अपनी ज़िन्दगी गुजारनी पड़ती है और तुम्हारे बैंक अकाउंट में हमेशा कुछ भी क्यों नहीं होता ? इस "क्या" की तलाश करना तुम्हे ज़रूरी क्यों नहीं लगता , हर तरह से काबिल होने के बाद भी- लीड जनरेट करने से लेकर सेल क्लोज करने तक ,प्रोडक्ट तैयार करवाने से लेकर डिलीवर करवाने तक ,बैक ऑफिस से फ्रंट ऑफिस मैनेज करने तक - हर चीज़ जानने के बावजूद भी तुम्हारी ज़िन्दगी संभली हुई क्यों नहीं है ?
ज़िन्दगी में ध्यान रखना इस आर्थिक युग में सफलता पैसे से नापी जाती है , तुम्हे काबिल तब माना जाता है ,जब तुम्हारे बैंक स्टेटमेंट इतने काबिल हो कि किसी तरह के लोन को सेंक्शन करने में बैंक ऑफिसर के माथे में सिलवटें न पड़े , इस युग कि ये विडंबना है कि इस युग में प्रधान पैसा है व्यक्ति गौण है ,तुम्हारा ज्ञान , तुम्हारा हुनर , तुम्हारी कमाई सब बेकार है अगर तुम्हारे बैंक स्टेटमेंट सही नहीं है और तुम्हारी ज़िन्दगी क्रेडिट कार्ड के भरोसे चलती है . 
मेरे ख्याल से तुम्हारी सबसे बड़ी जो प्रॉब्लम है वो कैश फ्लो और प्रॉफिट के बीच के फर्क को ढंग से नहीं पहचान पाने की है या ज्यादा बेहतर तुम खुद जानते हो, सफलता जो बाहर से नज़र आती है वो बैंक स्टेटमेंट में नज़र क्यों नहीं आती ? बाहर से खुश नज़र आने से तुम सही मायने में खुश नहीं हो जाते,सही मायने में तुम्हे ख़ुशी तब मिलती है जब तुम अंदर से खुश होते हो और ये ध्यान रखना ज़िन्दगी की वित्तीय सफलता / खुशियां बैंक स्टेटमेंट से निर्धारित होती है जो अंदर का हिस्सा है - बाहर तो सिर्फ ताम-झाम है बाहर वालों के लिए !!!!
सुबोध- अप्रैल २९, २०

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36 . ज़िंदगी – एक नज़रिया


रोटी की कीमत एक भूखा इंसान ही समझ सकता है , नौकरी की कीमत उससे पूछे जिसकी अभी-अभी नौकरी छूटी हो .पैसे की कीमत उससे पूछे जिसने अपना सब कुछ गवाँ दिया हो !!
असफलता , टूटन , हताशा ज़िन्दगी का मकसद नहीं है लेकिन ये भावनाएं हमसे उसी तरह चिपकी हुई है जिस तरह जिस्म से चमड़ी.
इंसान की ज़िन्दगी उस खेल की तरह है जिसमे एक पल हम ऊपर होते है और दूसरे पल नीचे , मुसीबत ये है कि हम ज़िन्दगी के उन पलों में जीते है जब हम नीचे होते है हम ऊपर होकर भी नीचे होने के खौफ में जीते है .
जो इंसान भूखा रह चूका है- भूख की पीड़ा , दर्द , ऐंठन, उबकाई, जकड़न जैसे दौर से गुजर चूका है वो इंसान सामने भरपूर खाना होने के बाद भी उस भूख के एहसास को जीता रहता है और छप्पन भोग को भी एक दंड समझता है और उस दंड से बचने के लिए या तो वो संग्रह करता है या उसे बर्बाद करता है ;यहाँ संग्रह करने का अर्थ चीज़ होने के बाद भी उसका भरपूर उपयोग न करने से है और बर्बाद करने से अर्थ फ़िज़ूलखर्ची से है .
भूख सिर्फ खाने की ही नहीं होती , मान -सम्मान की होती है ,पहुँच की होती है, सुविधाओं की होती है , पैसे की होती है और भी ढेरों चीज़ों की होती है और मानवीय प्रकृति के अनुसार हम हर भूख के साथ यही करते है या तो उसे संग्रह करके सजा कर रखते है या उसे दोनों हाथों से लूटा देते है .
इसे थोड़ा पैसे के सन्दर्भ में सोचिये, समझिए और यकीन मानिये आपके सन्दर्भ का विस्तार होने लगेगा , अपनी उन गलतियों को याद कीजिये जो पैसे को लेकर आपने की है जहाँ इसे खुला छोड़ना चाहिए था वहां किस बुरी तरह जकड कर रखा था और जहाँ इसे सम्भालना चाहिए था वहां दोनों हाथों से लूटा दिया था .
जिन गलतियों को किया है उन गलतियों को अगर नहीं किया जाता तो क्या होता ?
जिन पलों में हम ऊपर थे उन पलों को हम नीचे के खौफ में क्यों गुजारते रहे है- क्यों उन पलों को, उन पलों की सोच को साकार होने दिया ?
मुझ से किसी जवाब की उम्मीद मत कीजिये , क्योंकि मेरा जवाब मेरे लिए है और आपका जवाब आपके लिए ,सवाल सबके लिए एक हो सकते है लेकिन जवाब हमेशा निजी होते है !!
सुबोध-मार्च २६, २०१५

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35 . पैसा बोलता है ...

" अंकल, मेरे उत्तर पर मुझे जीरो दिया गया है क्या मैं गलत हूँ ?अंकल ,आप सही और ईमानदार जवाब देना " मेरे पडोसी कपूर साहेब का पंद्रह साल का लड़का मुझसे पूछ रहा था.

प्रश्न ये था "रावण को किसने मारा ?"

और कपूर साहब के लड़के ने जवाब दिया था "रावण को उसके  अहंकार ने मारा ."

उसकी टीचर ने न सिर्फ उसे जीरो दिया था बल्कि पूरी क्लास के सामने उसकी बेइज्जती भी की थी कि "हम पहली और दूसरी क्लास से ही ये सीखा रहे  है कि रावण को राम ने मारा और तुम इतने साल में भी ये याद नहीं कर पाये ."

मैंने उसे समझाने की  कोशिश की " हमारी शिक्षा व्यवस्था हमें रटना सिखाती  है, इस शिक्षा व्यवस्था में सोचने पर पाबंदिया  होती है ,क्योंकि रटने पर जवाब सिर्फ एक ही होता है लेकिन सोचने पर जवाब एक से अधिक हो सकते है .और टीचर्स इतने मैच्योर और समझदार नहीं होते है कि एक से अधिक जवाब सुन और समझ सके क्योंकि ऑफ्टरऑल उन्हें भी रटना ही सिखाया गया है ."

 मैंने उसके चेहरे पर उलझन और न समझ में आने वाले भाव देखकर एक प्रयास और किया  " हमारी शिक्षा व्यवस्था औद्योगिक युग की है जहाँ बताये गए काम को ठीक उसी के अनुरूप करना होता था जैसा बताया गया है वहां क्रिएटिविटी के लिए कोई जगह नहीं होती थी और गलतियों के लिए कोई गुंजाइश भी नहीं होती थी लिहाजा एक सवाल का एक ही उत्तर - खांचे में फिट ,न कम न ज्यादा ,न छोटा न बड़ा .और हमारे  टीचर्स के लिए भी ये आसान था , उन्होंने एक बार रट  लिया और ज़िन्दगी गुजर गई . "

मेरी कोशिश असफल रही उसका विकसित होता दिमाग इस जड़ता को पचा नहीं पा रहा था ,जो जवाब पहली और दूसरी क्लास के लिए सही था वही जवाब दसवीं क्लास में भी ! क्या दिमाग नहीं बढ़ा ? फिर जवाब वही क्यों अटका हुआ है ? "रटने" से आगे हमारे टीचर्स "समझने" की शुरुआत क्यों नहीं करते ?

सालों से हमारे टीचर्स ,हमारे पेरेंट्स हमे कह रहे है "अच्छे से पढाई करो,अच्छे नंबर लाओ ,अच्छी नौकरी ढूंढो और अच्छे से गुजारा करो." इतनी बार दोहराया गया है कि हमे याद हो गया है ,हमने उनके दोहराये वाक्यों को रट लिया है ,लिहाजा हम पढाई या नौकरी से बाहर भी ज़िन्दगी होती है ये समझना ही नहीं चाहते है ,हमे रटाया गया याद है कि राम ने  रावण को मारा और हम हमारी क्रिएटिविटी कि रावण को उसके अहंकार ने मारा भूल गए है ,भुला दिए गए है . हम एक चेक से दूसरे चेक का इंतज़ार करते है लेकिन खांचे के बाहर झांकने की हिम्मत और ज़ुर्रत नहीं करते कि टीचर हमे जीरो नहीं दे देवे .हमारी गरीबी की वजह ,पैसे की कमी की वजह रटाये गए जवाब है जिन्होंने हमारी क्रिएटिविटी ख़त्म कर दी है -  हमारे दिमाग को सीमित और संकुचित  कर दिया है.
 सुबोध - नवंबर २७,२०१४

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34 . पैसा बोलता है ...

पैसे के कुछ सिद्धांत होते है .

अगर कम पैसे कमाने हो तो ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है ,काम खुद करना पड़ता है ,  मेहनत  का रूप शारीरिक होता है, एवं जिम्मेदारी कम  होती है अगर ज्यादा पैसा कमाना हो तो कम मेहनत करनी पड़ती है, काम दूसरों से करवाना पड़ता है. मेहनत का रूप मानसिक होता है ,जिम्मेदारी ज्यादा होती है. 

बहुत से लोग जो  ज्यादा पैसा कमाना चाहते है उन्हें ये बात समझ में नहीं आती कि कम मेहनत करकर भी ज्यादा पैसे कमाए जा सकते है क्योंकि उन्होंने आज तक " पैसे कमाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है " , "हार्ड वर्क इज की ऑफ़ सक्सेस "   जैसे वाक्य सुने है,पढ़े है . 

मैं बहुत छोटे स्तर पर चीज़ों को लिख रहा हूँ विस्तार और सन्दर्भ स्वयं तलाश लीजियेगा .

कृपया बताये पेमेंट काम करने पर मिलता है या काम के परिणाम पर ?
आप को गौर से देखने पर पता चलेगा कि गरीब मानसिकता वाले लोगों के पास समय होता है लिहाजा वे अपने समय को बेचते है अपने शरीर को बेचते है यानि मज़दूरी करते है . उन्हें मजदूरी करने पर, काम करने पर, मेहनत ज्यादा करने पर  पेमेंट मिलता है .

जबकि अमीर मानसिकता के लोगों के पास दिमाग होता है लिहाजा वे अपने दिमाग को लगाते  है यानि काम करनेवाले मजदूरों को इकट्टा करते है और उनसे काम करवाते है.चूँकि वे परिणाम (RESULT ) को बेचते है तो उन्हें परिणाम देने पर पेमेंट मिलता है .

 मज़दूर को मेहनत ज्यादा करनी पड़ती है उसकी मेहनत का स्वरुप शारीरिक होता है लिहाजा वो जितनी ज्यादा मेहनत करेगा उतनी ही ज्यादा बढ़ोतरी पायेगा और उसके लिए" हार्ड वर्क इज की ऑफ़ सक्सेस" एक सही मुहावरा हो जायेगा .जिसमे काम ख़राब होने पर या मुनाफा न होने पर जिम्मेदारी उसकी नहीं होगी बल्कि मालिक या ठेकेदार की होगी . उसे अपने दिए गए समय का निर्धारित मूल्य मिलेगा .

दूसरी तरफ अमीर मानसिकता के लोगों को  पता है कि जो वस्तु ज्यादा उपलब्ध होती है उसके रेट कम होते है और जो वस्तु कम उपलब्ध होती है उसके रेट ज्यादा होते है ये मांग और आपूर्ति का मामला है .श्रम की आपूर्ति  बहुत ज्यादा है मांग से भी बहुत ज्यादा लेकिन परिणाम की आपूर्ति मांग से बहुत कम है.लिहाजा वे अपनी वित्तीय शिक्षा की बदौलत श्रम न बेचकर परिणाम  बेचते है और परिणाम बेचने के लिए मजदूरों को इकट्ठे करकर उनसे रिजल्ट लेना होता है ,वो मज़दूरों से मेहनत करवाने के लिए मैनेजर टाइप का कोई बंदा अपॉइंट  करते  है और परिणाम प्राप्त करते है . चूँकि वो खुद कुछ नहीं करते उनके  सारे काम  उनका   मैनेजर करता है लिहाजा उनके   लिए  " हार्डवर्क इज  की ऑफ़ सक्सेस "  एक गलत मुहावरा हो जायेगा .ऐसे लोगों के लिए सही मुहावरा  " स्मार्टवर्क इज  की ऑफ़ सक्सेस " होता है क्योंकि ये काम को स्मार्ट तरीके से करते है .इनकी शुरू में नेटवर्क बनाने की मेहनत ही हार्डवर्क होती है , नेटवर्क बनाने के बाद ये अपनी जिम्मेदारियाँ  दूसरों पर छोड़ते जाते है और खुद किसी अगले स्मार्टवर्क की तरफ मूव करते है .

अगले किसी प्रोजेक्ट में मजदूरों का नेटवर्क बनाने के लिए इनका मैनेजर इनके पास रहता  है  और ये एक के बाद एक इस तरह के प्रोजेक्ट करते जाते है . अगर इस कांसेप्ट को आप बराबर समझ जाते है तो ये आपके समझ में आ जायेगा कि अमीर ज्यादा अमीर क्यों बनते जाते है .

वैसे भी कहावत है आपको पहला लाख बनाने में टाइम,मेहनत,दिमाग लगाना पड़ता है फिर अगला लाख बनाने में वक्त नहीं लगता क्योंकि तब आपको  लाख बनाने का फार्मूला पता हो जाता है .
सुबोध

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33 . पैसा बोलता है ...

अगर अमीरी आपके लिए महत्त्वपूर्ण  है तो क्या ये आपके डेली के कामों में प्रायोरिटी रखती है ?
क्या आप हर रोज़ ऐसा कुछ अलग कर रहे है जिससे आप अमीरी तक पहुँच सके ?
अमीरी या गरीबी मेरी निगाहों में भाग्य की बात नहीं है ये आपके सतत प्रयासों का नतीजा होती है, आपके कर्म से निर्धारित होती है .गरीबी और अमीरी दोनों ही आपके कामों का परिणाम है -कुछ ऐसे काम जिन्हे अमुक तरीके से करना चाहिए  और कुछ ऐसे काम जो नहीं करने चाहिए ये सही- सही जानना ही आपकी अमीरी और ये नहीं जानना ही आपकी गरीबी की बुनियाद है .
महत्त्वपूर्ण ये है कि आप ये कैसे जानेंगे कि कौनसा काम करना चाहिए और कौन सा नहीं करना चाहिए ? 
इसके लिए आपको खुद को लगातार शिक्षित करना पड़ेगा. ये जानना पड़ेगा कि अमीरों की सोच,उनकी भावनाएं ,उनकी कार्यपद्धति क्या है और वो जैसी भी है वैसी क्यों है , उनकी सोच एक निर्धारित पैटर्न पर ही क्यों है ,वो ऐसी किन चीज़ों पर जोर देते है जिन्हे नेग्लेक्ट करना भारी पड़ सकता है !
आपको पढ़ कर शायद आश्चर्य हो कि अमीरों की सोच गरीबों की सोच से सिर्फ हलकी सी अलग नहीं होती है बल्कि तकरीबन विपरीत होती है . 
गरीबों के लिए जो शब्द महत्व पूर्ण होते है उनका अमीरों के लिए कोई महत्व ही नहीं होता बल्कि कई मामलों में तो गरीबों के लिए जो दर्दभरा अनुभव होता है अमीरों के लिए वो अपनी संपत्ति बढ़ाने का अवसर होता है ,जैसे खरीदने के समय महँगाई . या जैसे बेचने के टाइम मंदी . दोनों ही स्थिति में गरीब कुछ खोता है और अमीर पैसा बनाता है . 
गरीब जिस चीज़ की सबसे ज्यादा परवाह करता है वो है नौकरी की सुरक्षा  .जबकि  नौकरी करने का एक सीधा से मतलब है आप अपने श्रम से किसी दूसरे को अमीर बना रहे हो और  अमीर और गरीब में सबसे बड़ा फर्क ये नज़र आता है कि अमीरों  को नौकरी करना ही समझ में नहीं आता . लिहाजा वे एम्प्लोयी न बनकर एम्प्लायर बनते है. नौकरी करते नहीं है बल्कि करवाते है . 
कुछ लोग इस बात को समझ जाते है कि ज़िन्दगी में लम्बी ग्रोथ के लिए आपको अपना खुद का व्यवसाय करना पड़ेगा ,अगर अमीर बनना है तो एम्प्लायर बनना पड़ेगा , खुद का बिज़नेस करना पड़ेगा और वो ऐसा ही करते है .
वो कोई बिज़नेस शुरू करते है और असफल हो जाते है , क्यों ?
 ऐसा क्यों होता है कि कोई किसी लाइन में जाकर भयंकर पैसा पैदा करता है और कोई लगाई हुई पूँजी भी गवां बैठता है ?
जिस तरह गरीब आदमी पैसे के सिद्धांतों को नहीं समझ पाता उसी तरह ये असफल बिजनेसमैन बिज़नेस के सिद्धांतों को नहीं समझ पाते .मैं उन असफल बिजनेसमैन को गरीब और सफल बिजनेसमैन को अमीर कहूँगा .
गरीब  प्रोडक्ट बेहतर करने का प्रयास करता है कि मेरा प्रोडक्ट ,मेरी क्वालिटी अच्छी हो ,वो अपनी पूरी एनर्जी,पूरी ताकत प्रोडक्ट बेहतर बनाने में लगा देता है जबकि अमीर प्रोडक्ट पर नहीं टीम बनाने पर काम करता है वो एक प्रॉपर सिस्टम बनाने पर काम करता है ,टीम को शिक्षित करने ,क्लाइंट को संतुष्ट करने , मार्केटिंग करने पर मेहनत करता है वो जानता है कि प्रोडक्ट महत्वपूर्ण है लेकिन वो ये भी जानता है कि प्रोडक्ट से ज्यादा महत्व प्रेजेंटेशन का है ,मार्केटिंग का है,कस्टमर केयर सपोर्ट सिस्टम का है .
गरीब का विज़न बड़ा नहीं होता वो एक स्टोर जिस पर उसने खुद बैठना है वही तक सोच रखता है लिहाजा वो एक पूरा सिस्टम बनाने की सोच नहीं रखता है और इसी की वजह से वो मार खाता है वो हर चीज़ की जिम्मेदारी  खुद उठाना चाहता है और इसी वजह से  अपने नीचे एक जवाबदेह समूह तैयार नहीं कर पाता. हकीकत में  उसके अंदर अभी भी एक नौकर छुपा हुआ है ,वो बिज़नेस के नाम पर नौकरी करता है . जबकि अमीर सबसे पहले,हाँ प्रोडक्ट से भी पहले एक जवाबदेह समूह तैयार करता है .

गरीब  सबसे पहले खुद को पेमेंट देना चाहता है  , वो व्यवसाय के मूल सिद्धांत को भूल गया है या हो सकता  कि उसे पता ही नहीं हो कि  बिजनेसमैन  को बिज़नेस के शुरू में नहीं  सबसे आखिर में और सबसे ज्यादा  भुगतान मिलता है .
गरीब को  जानना चाहिए कि बिज़नेस में सबसे पहले इंफ्रास्ट्रक्चर पर होने वाले खर्चे निकले जाते है फिर एम्प्लोयी को  फिर उन प्रोफेशनल सेवाएं देने वालों को  जिनकी बदौलत कंपनी ग्रो कर रही है  फिर उन निवेशकों को जिन्होंने आप पर, आपके  कॉन्सेप्ट पर भरोसा करकर आपकी कंपनी में पैसा लगाया है पेमेंट दिया जाता है और तब जो बचता है वो आपको मिलता है  और वही  आपको लेना चाहिए  - अमीर बिजनेसमैन यही करते है !
होता ये है कि गरीब सबसे पहले खुद को पेमेंट करता है फिर अपने शौक को,अपनी इच्छाओं को पूरा करता है  कई मर्तवा तो वो निवेशकों तक के पैसे का इस्तेमाल भी कर लेता है और तब नंबर उन लोगों का आता है जिनके पेमेंट का उस पर सबसे ज्यादा प्रेशर होता है ,लिहाजा कंपनी की पेमेंट को लेकर साख बिगड़ती जाती है और अंततः जो होना चाहिए था वो असफल होकर या तो नए बिज़नेस की तलाश शुरू कर देता है या अपने सुरक्षित खोल में लौट जाता है उसी पुरानी या उससे मिलती-जुलती नौकरी में. 
और भी बहुत सी वजहें है जो किसी गरीब को गरीबी के दलदल से निकलने नहीं देती - किसी अगली पोस्ट में ....
-सुबोध 

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32 . पैसा बोलता है ...

गरीब आदमी की गरीबी बढ़ानी हो तो उसे पैसे दीजिये और उसकी गरीबी दूर करनी हो तो उसे ज्ञान दीजिये ऐसा ज्ञान जो किताबी नहीं ,व्यवहारिक हो .

किताबी ज्ञान एक बोझ के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है ऐसा ज्ञान स्कूलों  और पुस्तकालयों की शोभा बढ़ाने के काम ही आ सकता है . आश्चर्य तब होता है जब आर्थिक विषयों के पढ़ाने वाले प्रोफेसर जो करोड़ों की बातें करते है,करोड़ों कमाने के तरीके सिखाते है  और खुद हज़ारों की सैलरी पर जिन्दा रहते है. किताबी ज्ञान और व्यवहारिक ज्ञान का फर्क समझने के लिए ये बेहतरीन उदाहरण है .

कुछ  भिखारियों  से पुछा गया -

अगर तुम्हे एक करोड़  रुपये दिए जाए तो तुम उन पैसों का क्या करोगे ?

पहले का जवाब था - बाबूजी , मैं आराम से पुरी ज़िन्दगी भर-पेट खाना खाऊंगा और आराम की नींद सोऊंगा !

दूसरे का जवाब था- बाबूजी, मैं जब भीख मांगता हूँ तो मेरे पैरों में कंकड़ बहुत चुभते है , मुझे बड़ी पीड़ा होती है, मैं पूरी सड़क पर  मखमल के गलीचे बिछा दूंगा !

उनका जवाब उनकी  सोच और उनका  भविष्य बेहतरीन तरीके से दिखाता है .

अगर गरीब को पैसा दिया जाता है तो क्या होगा, सोचिये ? वो उस पैसे का क्या करेगा ?

वो सिर्फ अपनी सुविधाओं पर , अपनी खुशियों पर खर्च करेगा ! बड़ी टी.व्ही. खरीदेगा, फ्रीज खरीदेगा, ए.सी. खरीदेगा ,बड़ा मकान किराये पर लेगा ,सरकारी स्कूल से निकाल कर प्राइवेट स्कूल में अपने बच्चे को डालेगा , साइकिल छोड़ कर बाइक या कार खरीदेगा यानि सुख-सुविधाएँ जुटाएगा . 

और कुछ सालों तक  उसे जब लगातार पैसे दिए जायेंगे तो ये उसकी आदत  में आ जायेगा , वो नए प्रयास ,ज्यादा कोशिश करना बंद कर देगा क्योंकि उसे जो मिल रहा है वो उसके लिए सुकून भरा है  और परिणाम जिस दिन उसे पैसे देने बंद कर दिए जायेंगे उसमें इतनी भी संघर्ष क्षमता नहीं बचेगी कि वो ज़िन्दगी के थपेड़े झेल सके . यानि उसकी हालत पहले से ज्यादा ख़राब हो जाएगी वो पहले से ज्यादा गरीब हो जाएगा !!

ध्यान रखे सुरक्षा और सुविधा आपकी व्यक्तिगत संघर्ष क्षमता को कमजोर करती है और कई बार तो ख़त्म तक कर देती है .

आदिम मानव में ये क्षमता थी कि वे जंगली जानवरों का शिकार कर सके ,हमे हासिल लगातार की सुरक्षा और सुविधा ने हमारी वो क्षमता ख़त्म कर दी ,इसे सिर्फ एक उदाहरण भर समझ जाये ,मेरा लिखने का मतलब ये नहीं है कि जाकर पुरानी क्षमता हासिल करने का प्रयास किया जाए और वन्य प्राणी कानून  का उल्लंघन  किया जाये .

और अगर पैसे कि बजाय उन्हें  ( गरीबों को ) व्यवहारिक ज्ञान दिया जाएगा तो क्या होगा ,ये आप स्वयं बेहतर समझ सकते है !

सुबोध 

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31 . पैसा बोलता है ...

अक्सर कहा जाता है अमीर अमीरी के राज नहीं बताते !ये एक मिथ जैसा बन गया है ! 
चुटकुले के तौर पर कहा जाता है कि मारवाड़ी परिवारों में अपनी बेटी को धंधे  के गुर नहीं बताये जाते क्योंकि कल वो पराये घर जाएगी और उन्हें भी वो राज बता देगी ! ये चुटकुला अमूनन उन सेमिनारों में सुनाया जाता है जो " अमीर बनो " टाइप के होते है !
आइये थोड़ा इसका विश्लेषण करें -
क्या कोई अमीर अपनी बेटी किसी गरीब घर में देगा ?
नहीं, अमीर हमेशा अपनी बेटी अपनी बराबरी या अपने से ऊँचे अमीर घर में देगा .
तो जब उसकी बेटी की ससुराल पहले से  ही पैसेवाली है तो ज़ाहिर सी बात है उसे अमीरी के राज़ भी पता होंगे ! तो ये बात निहायत ही गलत है कि अमीर अपनी बेटी को धंधे  के राज़ नहीं बताते . कोई बाप अपनी बेटी के सामने शर्मिंदा नहीं होना चाहता जिस बात को वो शादी से पहले राज़ बना कर रखना चाहता है जब शादी के बाद वो राज़ नहीं रहेगा तो क्या कभी बेटी ये बात अपने बाप से नहीं पूछेगी कि आपने मुझे ये क्यों नहीं सिखाया .

दूसरी बात - अमीरी पाने में सोच और निर्णय सिर्फ एक व्यक्ति का हो सकता है लेकिन ये एक समूह के  प्रयासों का परिणाम  होती  है ,एक टीम वर्क की उपलब्धि होती है और ज़ाहिर सी बात है जहाँ टीम इन्वॉल्व हो जाती है वहां राज नामक कोई चीज़ नहीं रहती .


तो फिर ये गलत बातें उठाई कहाँ से गई है ?
" अमीर बनो " टाइप के सेमीनार करने वाले इस तरह की बाते कहकर उस बात को राज़ बना कर बेचना चाहते है जो दरअसल में राज़ है ही नहीं .

उनमे ये अहंकार हो कि हमने इस बारे में स्टडी की है 10  साल इसे जानने में लगाया है, 700 बुक्स पढ़ी है ,ढेरों विद्वानों को सुना है और वो इसे बेचने के लिए इस तरह की बाते गढ़ते   है .एक सेल्स ट्रिक की तरह .


सच हमेशा व्यक्तिगत होता है हो सकता हो ये उनका निजी अनुभव हो और जिसे उन्होंने सच का नाम दे दिया हो !

मेरी निगाह में ये उनका खुद को बेचने का एक तरीका भर है .


लेकिन  समाज भी तो यही कह रहा है ?

अक्सर गैर-जिम्मेदार ,कामचोर लोगों को खुद के बचाव के लिए किसी बहाने की तलाश होती है .पहले की पीढ़ियों ने अपनी नाकामयाबी को छुपाने के लिए एक बहाना गढ़ा और खुद को दोषी मानना बंद कर दिया कि हम तो मासूम है ,हमे क्या पता अमीर कैसे बना जाता है, ये तो बहुत बड़ा राज़ है और वे इसे जाते-जाते अगली पीढ़ी को सौंप गए , अगली पीढ़ी ने इसे सच मान लिया और उस सच को - उस थोपे गए झूठे सच को सच मान लिया कि अमीरी बहुत बड़ा राज़ है ! 


हर गरीब के पास एक अमीरी भरा अतीत होता है पांच पीढ़ी पुराना -सात पीढ़ी पुराना ,ज़ाहिर  सी बात है तब उस पीढ़ी को अमीरी के राज़ पता थे लेकिन बाद वाली  पीढ़ी उस तथाकथित राज़ को, उन नसीहतों को समझ नहीं पाई  , निभा नहीं पाई इसलिए  उनका सुनहरा अतीत आज दहशतजदा वर्त्तमान हो गया है - लिहाजा बात राज़ की नहीं रह जाती किसी बात को बराबर समझने और सीखने की रह जाती है. 


दरअसल अमीर मानसिकता उदारता भरी मानसिकता होती है वो पैसे की बहुलता देखती है वो इस तरह की छोटी सोच रख ही नहीं सकती .ये कुल मिलाकर उन के चरित्र पर किया गया दुराग्रह भरा आक्षेप  भर है ! 

मिर्ज़ा ग़ालिब  का एक शेर है-

हम  को  मालूम  है  जन्नत  की  हक़ीक़त  लेकिन 
दिल  के  खुश  रखने  को  'ग़ालिब  'ये  ख्याल  अच्छा  है .

कृपया उन लोगों की या मेरी बातों को मत सुनिए और न ही उन्हें सच मानिये बल्कि खुद की सुनिए , क्योंकि कोई आपको अमीर बना सकता है तो वो सिर्फ आप खुद है ! असंभव कुछ नहीं होता अगर ठान लिया जाए ,रुकने वाले के लिए हज़ार "  बहाने " होते है और चलने वाले के लिए सिर्फ एक " वजह " , सिर्फ उस एक वजह की तलाश कीजिये जो आपकी अमीरी की यात्रा की बैक -बोन बन सके !
सुबोध 

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30 . पैसा बोलता है ...

डर खुद में एक परिस्थिति भर है ,हम है जो उसे आकार देते है .हम है जो उसे छोटा बनाते है या बड़ा बनाते है या नगण्य बनाते है या चुनौती बनाकर खुद को मजबूत बनाते है !

गरीबी से पैदा होने वाली मज़बूरियों का डर हमे पैसा कमाने की विवशता देता है , इस डर का सामना हम पैसा कमा कर करते है . संसार के अधिकांश लोग गरीब होने से बचने के लिए पैसा कमाते है - अपनी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए , हलकी-फुल्की सुविधाएँ पूरी करने के लिए . 

वे एक डर का , गरीबी के डर का सामना बड़े ही हलके स्तर पर करते है उस डर को पूरी तरह नेस्तनाबूद नहीं करते , वे रोटी के लिए संघर्ष करते है ,कपडे के लिए ,छत के लिए ,टी.व्ही . के लिए, फ्रीज के लिए संघर्ष करते है- यानि उतने ही पैसे के लिए करते है जितना वे अपने कम्फर्ट जोन में रहते हुए पैदा कर सके.

वे अपने बर्तन को बड़ा नहीं करते , क्यों ?

क्योंकि बर्तन जितना बड़ा होता है उसे इस्तेमाल करना , साफ़ रखना , सम्हालना उतनी ही मेहनत मांगता है , जब छोटे बर्तन से काम चल रहा है तो बड़े की क्या ज़रुरत ?

क्योंकि उनका संघर्ष पैसे कमाने का है ,अमीर बनने का नहीं है .

 हकीकत में वे आवश्यकता और सुविधा के डर को जीतते-जीतते खुद को इतना ज्यादा थका हुआ मान लेते है कि वे और नयी चुनौती का सामना नहीं करना चाहते . उनका दायरा वो तालाब बन जाता है जो मेंढक का होता है - कम्फर्ट जोन से बाहर आना हमेशा पीड़ा देता है ,दर्द देता है, मेहनत देता है  और ये पीड़ा का डर,दर्द का डर ,मेहनत का डर पावों की बेड़ियां बन जाता है . लिहाजा वे अपने संघर्ष को अमीरी का संघर्ष नहीं बना पाते .

वे अमीर बनना चाहते है लेकिन अमीर बनने की कीमत चुकाने को तैयार नहीं होते.क्योंकि इस सौदे में अमीरी जो कीमत उनसे मांगती है वो उन्हें बहुत महँगी लगती है और गरीब मानसिकता के लोग सस्ते के आदी होते है , महँगा होने का डर उनकी चाहत पर भारी पड़ता है !!!
- सुबोध 

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29. पैसा बोलता है ...


कोई भी समस्या अपने साथ अवसर लेकर आती है , अमूनन लोग समस्या का एक हिस्सा देखते है वो हिस्सा खुद में ही एक समस्या होता है ,उस समस्या का एक व्यवहारिक हल तलाशना और उसका व्यावसायिक उपयोग कर पाना पैसा पैदा करता है यानी समस्याओं को हल करने से पैसा मिलता है .अगर समस्या छोटे स्तर पर हल की जाती है तो कम पैसे मिलते हैं  और बड़े स्तर पर हल की जाती है तो भरपूर पैसे मिलते हैं  .
ध्यान देवे गरीब मानसिकता हमेशा समस्याओं का रोना रोती रहती है 
और
अमीर मानसिकता समस्या का व्यवहारिक हल देखकर उसका व्यावसायिक उपयोग करती है .
यानि अमीर समस्या से बड़े होते है और गरीब समस्या से छोटे ,अमीर समस्या निवारक होते है और गरीब समस्या के उपभोक्ता. 
आइये इसे एक कहानी  से समझे .
एक देहात में कई   किसान रहते थे ,सारे  ही परेशान थे कि चूहे उनके गोदाम में पड़ा हुआ अनाज खा जाते थे .
रामप्रसाद नामक किसान अपने किसी शहरी रिश्तेदार से इसकी चर्चा करता है जो कि पढ़ा -लिखा है और उसकी सलाह से पिंजरों  का इस्तेमाल करता है  और अपने गोदाम में पड़े अनाज को चूहों से बचाता है .
बाकी किसान परेशान है चूहों से .
रामप्रसाद इस समस्या को एक अवसर की तरह इस्तेमाल करता है शहर जाता है और वहां से पिंजरे बनवा कर अपने देहात में लाकर अच्छे-खासे  मुनाफे के साथ बेच देता है  .
रामप्रसाद और बाकी किसानो में फर्क क्या है ,ये सोचे-समझे .

हकीकत में समस्या नाम की कोई चीज़ होती ही नहीं है !!!

एक परिस्थिति जो आपके कम्फर्ट जोन के बाहर होती है  उसे आप समस्या मान लेते है जबकि वो समस्या नहीं एक परिस्थिति है .
इसे एक उदाहरण से समझे . 
आप कल्पना  कीजिये कि आप कक्षा पांच के छात्र है , अब अगर आपको कक्षा दो ,तीन या चार के प्रश्न हल करने को दिए जाते है तो क्या होगा ?
क्या वो आपके लिए समस्या है ? जवाब आप खुद बेहतर जानते है .
अब अगर आपको कक्षा छह ,सात,आठ नौ या उससे ऊपर के प्रश्न हल करने के लिए दिए जाते है तो क्या होगा ?
क्या ये आपके लिए समस्या नहीं है ?
दोनों ही स्थितियों में सवाल पूछना सिर्फ एक परिस्थिति भर है , आपकी क्षमता  , आपकी  ताकत  , आपका दायरा अगर सवालों से छोटा है तो सवाल आपके लिए समस्या है अन्यथा वे आपके लिए समस्या ही नहीं है .

मुद्दे की बात ये है कि सवाल या परिस्थिति समस्या नहीं है ,समस्या आपका स्वयं का आकार है . अगर कोई भी परिस्थिति आपकी क्षमता से, आपकेँ आकार से बड़ी है तो वो आपकेँ लिए समस्या है और अगर छोटी है तो वो आपकेँ लिए समस्या है ही नहीं.
इसे अगर अलग तरीके से कहे तो समस्या आपका छोटा होना है. अगर आप छोटे नहीं है तो कोई भी परिस्थिति आपके लिए समस्या नहीं है. 

अब कुछ प्रश्नों  का जवाब देवे ,

देहात में चूहों का होना क्या है ?
रामप्रसाद नाम के किसान के लिए शुरू में चूहे समस्या क्यों थे ?
अंत में रामप्रसाद नाम के किसान के  लिए चूहे समस्या क्यों नहीं रहे ?
क्या आप अपनी किसी भी समस्या के साथ ' रामप्रसाद ' जैसा कर सकते है ?
कृपया गौर करें छोटी से छोटी परिस्थिति भी कुछ लोगों के लिए समस्या होती है और रहेगी ,हर क्षेत्र में समस्याओं का अम्बार है ज़रुरत है उन्हें ढंग से चिन्हित करने की, उसका व्यवहारिक हल तलाशने की और उस हल का व्यावसायिक उपयोग कर पाने की. 
अमीरी आपका इंतज़ार कर रही है !!! 

सुबोध 

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28. पैसा बोलता है ...

राय देना तकरीबन हर इंसान का प्रिय शगल होता है ,आपको और कुछ मिले न मिले लेकिन राय जितनी मांगेंगे उस से ज्यादा मिलेगी .राय मांगने पर एक अनाड़ी आदमी डॉक्टर ,मेकैनिक ,वकील,नेता, पुलिस अधिकारी वगैरह सब कुछ बन जाता है और ऐसी-ऐसी राय देता है कि आपकी समस्या का समाधान तुरंत हो जाता है ,तो अगर आप मेरी बात समझ रहे है तो कृपया राय लेने से पहले देख लेवे आप किस से किस विषय पर  किस तरह की राय ले रहे है .

 अमूनन जब कोई बिज़नेस शुरू करना चाहता  है तो जिनसे राय ली जाती है वे जॉब वाली प्रोफाइल से आये हुए लोग होते है ,वे इस बात को समझ ही नहीं पाते कि एक पढ़ा लिखा काबिल इंसान जो अच्छी नौकरी पा सकता है वो नौकरी न करकर  रोड पर धक्का क्यों खाना चाहता है ? ये बिलकुल ऐसी ही सोच है कि जिस काम में रिस्क हो उस काम को नहीं करना चाहिए ,जब ऐसे लोगों से राय मांगी जाती है तो ज़ाहिर सी बात है वे मना ही करेंगे .

अब ये समझे कि वे मना क्यों कर रहे है ?

पहला कारण ये हो सकता है कि वे बहुत ज्यादा सेफ गेम खेलते है चूँकि वे आपके शुभचिंतक है और नहीं चाहते कि असफल होने पर आप किसी पीड़ा से गुजरे .

दूसरा कारण ये हो सकता है कि ज़िन्दगी में कभी उन्होंने " आउट ऑफ़ बॉक्स " जाकर प्रयास किये थे और वे असफल हो गए थे .

तीसरा कारण ये हो सकता है कि उनकी कंडीशनिंग के मुताबिक बिज़नेस करना एक हौवा  है,इसको करना बुराई की और बढ़ना है ,इसमें लोग असफल ज्यादा होते है और कोई सफल भी हो गया तो ज़िन्दगी भर परेशान रहता है .

कृपया जब भी आपको राय लेनी हो तो परिवार या जान-पहिचान के उस व्यक्ति से नहीं लेवे जो उस क्वान्ड्रेंट का नहीं  है  ,अगर आपको बिज़नेस करना है तो राय किसी बिजनेसमैन  से लेवे उस बिजनेसमैन  से जो सफल हो चूका है क्योंकि वही आपको सफलता पाने के सही तरीके बता सकता है .आपको बिज़नेस शुरू करना है और आप किसी अनप्रोफेशनल पहलवान से जाकर राय करते है तो क्या जवाब होगा और वो जवाब कितना जायज़ होगा सोचे-समझे . इसी तरह से किसी असफल व्यवसायी से राय लेना खुद को नकारात्मक करना है .

जैसा की मैंने अपनी पुरानी पोस्ट में लिखा था आपके सबसे बेहतरीन दोस्त" क्या",  "क्यों", "कब"," कैसे", "कहाँ" है .जब भी आपको कोई उलझन हो इन दोस्तों से उस विषय में बात करें ये आपको रास्ता दिखाएंगे .
जैसे आपको व्यवसाय करने से  आपका शुभचिंतक मना करता है तो उससे पूछे मुझे व्यवसाय "क्यों" नहीं करना चाहिए ?

वो जो भी कारण बताता है उसके बाद वापिस अपने किसी दोस्त को आएगे कर दीजिये ,और तब तक आगे करते रहिये जब तक आप निर्णय की स्थिति में नहीं पहुँच पाते !

आपको देखकर आश्चर्य होगा कि उनकी राय आपके  कठोर सवालों का सामना नहीं कर पा रही  है और वो खिसिया रहे है !

आप सावधान हो जाइये ये तो एक क्वान्ड्रेंट वाले का दुसरे क्वान्ड्रेंट वाले से राय करना है और उसका राय न मिलने का किस्सा है यहाँ तो एक क्वान्ड्रेंट वाले का उसी क्वान्ड्रेंट वाले से राय न मिल पाना भी आम है  जैसे एक रनिंग सेटल्ड बिजनेसमैन से या कॉर्पोरेट हाउस के बड़े शेयर होल्डर से  अगर किसी स्टार्टअप के बारे में पुछा जाये तो उसे भी" हाँ" करना समझ में नहीं आएगा !! 

क्यों ?

क्योंकि आखिरकार वे सड़क के दुसरे छोर पर खड़े है !!!!

ऐसी स्थिति में अपने विवेक का उपयोग करें और अपने बेहतरीन दोस्तों ( 5 Q ) पर भरोसा करें ,वे आपको तब तक गलत नहीं होने देंगे जब तक आप खुद गलत न होना चाहे.

सुबोध 

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27. पैसा बोलता है ...

अमूनन लोगों को अपनी ज़िन्दगी में  पैसे को लेकर उसकी प्राथमिकता का क्रम पता नहीं होता .
हो सकता है आपको सुनने में ये थोड़ा अजीब लगे ,लेकिन आप प्राथमिकता क्रम बनाये तो आपको पता चलेगा कि आप कंफ्यूज ( Confuse ) है कि किसको ऊपर रखूं और किसको नीचे.  कृपया इस क्रम को बनाये और ईमानदारी से बनाये !
अगर पैसा आपकी प्राथमिकता के तीसरे क्रम में आ रहा है तो चौकन्ने हो जाए आप खतरनाक स्थिति में है !
मेरा ये वाक्य पढ़कर अगर आप क्रम को बदल रहे है तो कृपया इस बात को समझ लेवे इस से आपको कोई फायदा होने वाला नहीं है क्योंकि जब तक आपकी मानसिकता में ये प्राथमिकता क्रम में नहीं बदलता आप अपने प्रयासों में बदलाव नहीं कर पाएंगे .
आप सोच रहे होंगे मैंने तीसरा क्रम क्यों लिखा ?
पैसा आपके पहले या दूसरे क्रम में है ,वहां तक ठीक है अगर उसके बाद वाले क्रम में है तो ध्यान देवे आपका पैसे से डायरेक्ट सम्बन्ध नहीं है बल्कि उसके बीच में दो और पड़ाव है जो आपकी ऊर्जा को सोख सकते है !
मान लीजिये आपके पहले क्रम में परिवार को क्वालिटी टाइम ( Quality Time ) देना है ,दूसरे क्रम में मनोरंजन का कोई साधन है या पूजा-पाठ है या N G O के लिए कार्य करना है ,उसके बाद पैसा है तो क्या होगा ?
अगर आप बहुत ज्यादा ऊर्जावान है तो भी जाहिर सी बात है आपकी ऊर्जा इन्ही दो प्राथमिकताओं में तुलनात्मक रूप से ज्यादा वितरित होगी ,अपनी तीसरी प्राथमिकता के लिए आप कितना क्या प्रयास करेंगे, कर पाएंगे ?
आदमी अपनी प्राथमिकताओं के अनुसार कार्य करता है और किये गए कार्यों के अनुसार ही उसको प्राप्त होता है ,अगर आप परिवार को क्वालिटी टाइम देने का प्रयास करेंगे तो जाहिर सी बात है आप क्वालिटी टाइम देना सीखेंगे और क्वालिटी टाइम देंगे . ( अमूनन 90 % लोग परिवार के साथ वक्त गुजारना,या उन पर पैसा खर्च करना ही क्वालिटी टाइम देना समझते है -उन्हें टाइम और क्वालिटी टाइम का फर्क ही पता नहीं होता !) 
अब अगर पैसा आपकी प्राथमिकता में तीसरे नंबर पर है तो ज़ाहिर सी बात है आप पहले और दूसरे नंबर वाली प्राथमिकता को लेकर ज्यादा उत्सुक रहेंगे और पैसे के प्रयास उसकी प्राथमिकता के अनुरूप ही करेंगे और उसी अनुपात में वो आपको प्राप्त होगा !
अगर आप गरीबी या मध्यम वर्गीय स्तर पर है ,आपको लगता है कि आपकी कमाई कम है तो कृपया अपने पैसे की प्राथमिकता के स्तर को चेक ( Check )करे और उसमे समुचित बदलाव लायें.आप जो चाहेंगे वो आपको मिलेगा बशर्ते आप अपनी प्राथमिकता में स्पष्ट हो और सही तरीके से प्रयास करें .
- सुबोध  

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26. पैसा बोलता है ...

कंडीशनिंग  के शिकार लोग अपनी असफलता के लिए भाग्य को दोष देते है !

संसार के अधिकांश लोग अमीरी और गरीबी को ,सफलता और असफलता को,हार और जीत को  भाग्य का खेल मानते है . वे इतने मासूम होते है कि बस छूटने से लेकर जेब कट जाने तक को किस्मत की  बात मानते है.

क्या आपको नहीं लगता कि  बस का छूटना  टाइम का मिस मैनेजमेंट  है , जेब का कट जाना लापरवाही का नतीजा है ,असफलता अधूरे प्रयासों का परिणाम है, हारना रणनीति के अभाव का फल है ,इसी तरह से गरीबी अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह न  जानने का परिणाम है . भाग्य या किस्मत को दोष देने से आप अपनी जिम्मेदारियों  से बच भर जाते है अपनी चिंतन-प्रक्रिया को एक गलत दिशा दे कर भारमुक्त हो जाते है. 

ये गैर जिम्मेदारी आती कहाँ से है , जो आपको अमीर बनने से , सफल व्यक्ति बनने से रोकती है  ?

इसकी जड़े कहाँ है ,क्या आपने कभी जानने का प्रयास किया ?

सफलता के ऐन नज़दीक पहुँच कर आपका मन बदल जाता है ,आप थकान महसूस करने लगते है, पेड़ को धराशायी करने के लिए सिर्फ एक वार ही और चाहिए था और कुल्हाड़ी उस आखिरी वार से पहले छूटकर घाटी की अतल गहराइयों में समां  जाती है.क्यों होता है ऐसा ? 

एक ही स्कूल से पढ़े-लिखे एक जैसे दिमाग वाले ,एक जैसे स्टेटस वाले दो  दोस्त जब असली ज़िन्दगी की शुरुवात करते है तो एक मीलों आगे निकल जाता है दूसरा  रास्ता कहाँ भटक गया पता ही नहीं चलता ?

अगर बार बार ऐसा ही हो रहा है तो अपनी बचपन की यादें टटोलिये कही वहां तो असफलता के बीज नहीं बोये हुए है ,जो विशाल पेड़ बनकर आपके दिमाग में ठहर गए है .और उम्र पाकर बड़े होने पर वे अब फल देने लगे है !

ये जान लीजिये कि भाग्य और  किस्मत सतत प्रयासों का परिणाम  है ,अगर सतत प्रयासों के बाद भी आपका भाग्य ,आपकी किस्मत आपका साथ नहीं दे रही है तो कहीं कुछ ऐसा है जिसे आप जानते नहीं है ,उसे जानिये .संभव है वो आपकी अतीत की कंडीशनिंग  हो.अगर आपकी कंडीशनिंग गलत हुई है तो उस कंडीशनिंग को जानिये,पहचानिये और वक्त रहते उस से छुटकारा पा लीजिये ;अपनी असफलता  को ,अपनी हार को अपना भाग्य न बनने दीजिये !! 
सुबोध 

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25. पैसा बोलता है ...

मैंने लिखा था कि कंडीशनिंग से शक्तिशाली सिर्फ रीकंडिशनिंग होती है !
ज्यादातर लोग ये सोचते है कि उनके बिज़नेस की सफलता उनके ज्ञान, उनकी योग्यताओं पर निर्भर है , मुझे इस बरसों पुरानी कंडीशनिंग के खिलाफ लिखते हुए दुख हो रहा है ,लेकिन ये  सच का बहुत छोटा सा अंश  है .पूरा सच ये है कि आपके व्यवसाय की सफलता आपकी कंडीशनिंग पर निर्भर है आपकी योग्यता ,आपका ज्ञान और आपकी टाइमिंग सिर्फ आपकी कंडीशनिंग को सपोर्ट करने वाले टूल्स है .
अगर आपकी कंडीशनिंग में "अमीरी पाप है" तो आप अपने व्यवसाय में ऐसा कुछ कर देंगे जिससे आपकी कमाई सीमित हो जायेगी और आपको अमीरी नामक पाप से बचा लेगी जबकि आपका कम्पीटीटर अपना बैंक बैलेंस बढ़ाता रहेगा क्योंकि उसकी कंडीशनिंग आपसे अलग है .
अगर आपका पैसे को लेकर ब्लू प्रिंट एक लाख रुपये साल का है और गलती से आपने उस साल डेढ़ लाख कमा लिए है तो ज्यादा कमाए गए पचास हज़ार आपसे सीधे या उलटे तरीके से खर्च करवा दिए जायेंगे और अगर आपने कम कमाए है तो आपको कोई अतिरिक्त कमाई हो जाएगी ,आपकी कंडीशनिंग कभी आपके साथ अन्याय नहीं होने देगी और ये सिलसिला तब तक चलेगा जब तक आप अपनी कंडीशनिंग को नए सिरे से रीकंडिशन नहीं करेंगे.
नई चीज़ बनाना आसान होता है लेकिन बनी हुई चीज़ को जो  गलत बन गई है नए सिरे से बनाना कई गुना मेहनत मांगता है . अगर आपको अपने लिए  घर बनाना है आप एक प्लाट खरीदते है और  आर्किटेक्ट को बुलाकर उससे प्रोपेरली डिसकस करकर ,जो सलाहें ज़रूरी हो करकर काम शुरू करते है और नया घर बना लेते है .
अब इसे अलग तरीके से समझे आपको अपने लिए  घर बनाना है , आप एक बना-बनाया घर खरीदते है और उसे अपने तरीके से नया बनवाते है तो क्या तरीका होगा ? आप आर्किटेक्ट को बुलाकर उससे प्रोपेरली अपनी ज़रूरते डिसकस करेंगे और वो आपको बताएगा कि आपको बने हुए घर का कौन-कौन सा हिस्सा तुड़वाना है और उसे किस तरीके से नया बनाना है !!!
क्या ये दूसरा हिस्सा उतना ही आसान है जितना पहला हिस्सा था ?
मुझे याद है मेरे पड़ोस में रहने वाले कपूर साहब के साथ एक समस्या आई थी .  उनका लड़का JUNIOR K .G . में था. अपने बेटे को  श्रीमती कपूर अल्फाबेट सिखाने लगी- जैसाकि अमूनन हर घर में किया जाता है . यहाँ तक सब ठीक था अल्फाबेट में जब Q सिखाया गया तो श्रीमती कपूर ने बच्चे को Q माने रानी सीखा दिया ( आप गौर करें Q  के साथ अल्फाबेट की बुक  में रानी  की तस्वीर  बनी होती है ) और ये सिलसिला करीबन हफ्ता भर चलता रहा 
P  माने पैरेट, Q  माने रानी,R  माने रेट ,बच्चा दिन भर अल्फाबेट दोहराता रहता माँ उसको लाड करती रहती  . बच्चा भी खुश बच्चे की माँ भी खुश कि मेरा बेटा बड़ी तीव्र बुद्धिवाला है , संडे को मैं और कपूर साहब बाहर बैठे हुए थे ,उनका बेटा भागता दौड़ता  आता और अल्फाबेट दोहराता , अचानक कपूर साहब ने अपने बेटे को बुलाया और कहा "अंकल को अल्फाबेट  सुनाओ" . 
बेटे को जो याद था उसने सुना दिया  P  माने पैरेट Q  माने रानी R  माने रेट.. 
मैंने टोका "'बेटे Q  माने क्वीन "  
"नहीं अंकल Q  माने रानी "
आपको शायद आश्चर्य हो कपूर साहब को अपने बेटे को Q  माने रानी को भुलाने, Q  माने क्वीन समझाने,सिखाने और याद करवाने में तकरीबन चार महीने का वक्त लगा !!!
ये रीकंडिशनिंग का प्रोसेस  है .
एक छोटे बच्चे की कुछ दिनों की गलत कंडीशनिंग जब इतनी भारी पड़ती है ,वयस्क लोगों की कंडीशनिंग तो सालों से हो रही है -मैं ये सोचकर दशतजदा हो जाता हूँ कि इन्हे तो अपनी गलत कंडीशनिंग का पता ही नहीं है और जब इनको पता चल जायेगा उसके बाद इनकी रीकंडिशनिंग में कितना वक्त लगेगा ? 

- सुबोध 

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24. पैसा बोलता है ...


जो शख्स कंडीशनिंग का शिकार होता  है वो कंडीशनिंग का शिकार होने के बावजूद स्वयं को स्वस्थ और नार्मल मानता है .उसे आसानी से ये बात समझ में नहीं आती कि उसके निर्णय उसके नहीं होकर उस व्यक्ति के है जिसको देखकर,सुनकर वो ऐसा बना और विकसित हुआ है .
 सालों से ऐसा व्यवहार करते और होते रहने की वजह से ये उसका  कम्फर्ट जोन हो गया है इससे बाहर झांकना उसके  लिए तकलीफदेह होता है लिहाजा वो  अपने खोल में ही सिमटे रहना चाहता  है ,अगर आप उसको  बतायेगे कि उसका  खोल पुराना हो गया है या गंदला गया है तो वो  आपसे नाराज हो जायेगा  और धर्म,समाज,परिवार ,अतीत वगैरह के उदाहरण दे कर खुद को जायज ठहराने का प्रयास करेगा  . 
पिछले दिनों मेरे घर पर मेरा एक दोस्त आया हुआ था उसने रिस्ट वाच पहनी हुई थी , करीबन दो घंटे गप-शप   करने के बाद उठने से पहले उसने समय देखने के लिए अपने मोबाइल का इस्तेमाल किया तो मुझसे रहा नहीं गया मैंने उससे पूछा कि जब तुमने समय अपने मोबाइल से ही देखना है तो तुमने घड़ी क्यों पहनी हुई है,तुम्हारी तो घड़ी भी एक आर्डिनरी घड़ी है कोई डिज़ाइनर या एंटीक  टाइप की भी नहीं है.
मेरा दोस्त पढ़ा लिखा है सालों से मोबाइल ( MOBILE ) इस्तेमाल कर रहा है ,मोबाइल के ढेरों फीचर्स उसकी जानकारी में है लेकिन उसने जो जवाब दिया वो  जवाब हैरान करने वाला था "क्योंकि मेरे पिताजी और दादाजी भी घड़ी पहनते थे इसलिए मैंने घड़ी पहनी हुई है !!!!  "
कुछ लोग समय में जम जाते है ! मेरा दोस्त समय में जम गया है ,उसके दिमाग की कंडीशनिंग ऐसी हो गई है कि घड़ी का उसके लिए कोई भी व्यवहारिक उपयोग न होने के बावजूद वो घड़ी का वजन अपनी कलाई पर ढोता है .
मुझे रिस्ट  वाच पहने हुए करीबन दस साल गुजर गए है !!! 
आपको ?
अगर आपने मोबाइल होने के बावजूद  घड़ी पहनी हुई है तो चेक करें आपने घड़ी क्यों पहनी है ?
क्या आपके पास ऐसा कोई जवाब है जिससे आप खुद को कह सके कि मैं किसी कंडीशनिंग का शिकार नहीं हूँ .अगर आपने ऐसा कोई कारण ढूँढ लिया है तो शुरू का पहला पैराग्राफ पढ़ लेवे !!! 
हो सकता है धन के मामले में हम  किसी कंडीशनिंग का शिकार हो और हमे इसका पता ही नहीं हो !
-सुबोध 

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23 . पैसा बोलता है ...

ज्यादातर लोगों के पास न पैसे बनाने की क्षमता होती है और न सम्हालने की .
कुछ लोगों के पास पैसे बनाने की क्षमता होती है लेकिन उन्हें पैसे सम्हालने नहीं आते .
बहुत कम लोगों को पैसा बनाना भी आता है और सम्हालना भी .
आप किस वर्ग में है ?


सुबोध -

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22 . पैसा बोलता है ...

पैसे का बहाव बरकरार रखने या पैसे का रिसाव रोकने के लिए सवालों का सामना कीजिये
सबसे अच्छे दोस्त वो सवाल होते है जो आपको मुश्किलों में डालते है
क्या
क्यों
कब
कैसे
कहाँ
……. ?
…….?
सवाल जो भी हो उत्तरों में ईमानदार रहिये ,आपकी समस्या के समाधान के रास्ते आपको नज़र आने लगेंगे.


सुबोध -

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21 . पैसा बोलता है ...

कहते है पैसा चलायमान होता है .
सवाल ये है कि ये आपके पास चलकर आ रहा है या आपके पास से चलकर जा रहा है.
चुनौती ये है कि अगर चलकर आ रहा है तो इस आवक को बरक़रार कैसे रखा जाये और अगर आपके पास से चलकर जा रहा है तो इसे कैसे रोका जाये .
इस संसार में पाने वाले भी बहुत है और खोने वाले भी .
आप किस वर्ग में आते है ?

सुबोध -

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20 . पैसा बोलता है ...

अमीरी या गरीबी का निर्णय  ऊँची सैलरी या ऊँची कमाई नहीं होता है बल्कि कमाए गए पैसे में से आपने बचाया क्या है , इस से होता है .
" अ " लाख रूपये महीने कमाने वाला बंदा जिसका खर्च 98  हज़ार रूपया महीना है ,और" ब "  जो 30  हज़ार रूपया महीने का कमाता है उसका खर्च 27 हज़ार है तो अमीर "अ" नहीं" ब" होता है अगर 5  साल यानि 60 महीने बाद की इनकी स्थिति समझी जाए तो "अ" 1  लाख  20  हज़ार का और "ब" 1लाख 80 हज़ार का मालिक होता है और ये तो सीधी सी गणित है . 
"अ" खर्चे में, लिविंग स्टैण्डर्ड में  आपको अमीर लग सकता है और "ब" गरीब  लेकिन" अ"  और" ब" की 5  साल बाद की बैलेंस शीट जो कहती है वो कुछ अलग ही कहानी है .छोटी सी लगनेवाली 1 हज़ार की एक्स्ट्रा बचत लम्बे समय में कितना बड़ा फर्क  बनती है ये इस उदाहरण  से स्पष्ट है .
                        ये बात अच्छे से समझ लेवें कौन कितना कमाता है, उसका लिविंग स्टैंडर्ट कैसा है अमीरी के खेल में  इस से कोई फर्क नहीं पड़ता , अंत में कौन कितना जोड़ पाता है  , बैलेंस शीट किसकी मजबूत है -फर्क इस से पड़ता है.
             अमूनन अमीर लगने वाले डॉक्टर  ,वकील, चार्टेड अकाउंटेंट जैसे लोगों की स्थिति अंदर से कुछ और हो सकती है .  

- सुबोध 

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19 . पैसा बोलता है ...

सपने छोटे क्यों ?

छोटी सोच वाले
छोटे सपने देखते है
और सिर्फ देखते है.......

-
बड़े सपने देखने पर
शुभचिंतक हो जाते है दहशतज़दा
वे ढूंढते है
बड़ी समस्याओं के लिए
छोटे-छोटे समाधान.
-
नहीं समझ पाते
कि सपने
देखने से नहीं
बल्कि पूरे होते है
सुव्यवस्थित प्रयास से ,
नहीं समझ पाते
कि वे इस किनारे पर है
दुसरे पर उनके सपने
और बीच में समस्याओं की नदी .
-
उन्हें सिर्फ बनाना है एक पुल
इस किनारे से उस किनारे तक
उन्हें पुल बनाने का
जुटाना है सामान
पैदा करनी है काबिलियत
उसके बाद
सपने उनके होंगे.
हाँ, जो भी देखे होंगे,
चाहे बड़े हो या छोटे.
तो छोटे क्यों ?

सुबोध- १४ मई,२०१४


















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18 . पैसा बोलता है ...

अमीर बनने के लिए आपके पास एक ठोस कारण  होना चाहिए जो आपमें इतनी आग पैदा कर सके कि आप मंज़िल पा सके . मंज़िल दूर नहीं है सिर्फ एक बेहतरीन प्लानिंग करकर शुरुआत भर करनी है, बाकि सब अपने आप होता जायेगा - आपका कारण,आपका सपना आपसे करवा लेगा . अगर आपके पास ऐसा कोई कारण नहीं है जो आपको अमीर बनने की  प्रेरणा दे सके तो आपको इतना बता दूँ  अमीर बनने में बहुत-बहुत ज्यादा मेहनत होती है , मंज़िल तक ले जाने वाली सड़क बहुत उबड़-खाबड़ है उसमें ढेरों गड्ढे है और सफलता की सम्भावना भी न के बराबर है. तो बेहतर है पहले एक कारण, एक सपना पैदा कीजिये जो आपको पागल कर सके ,जो आपके होश उड़ा सके , तब इस खेल में शामिल होइए.
-सुबोध

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17 . पैसा बोलता है ...

भाग्य खैरात नहीं देता

मैंने
पढ़ा
सोचा
समझा
अवसर देखा
सीखा
किया
और तुमने
पढ़ा
सोचा
समझा
कठिनाईयाँ देखी
और छोड़ दिया.
अब तुम कहते हो
मुझे सफलता भाग्य से खैरात में मिली है.
क्या तुम नहीं जानते
मैंने चूमे है ढेरों मेंढक
पाने को राजकुमार
और तुम छुप गए कछुए के खोल में
बचाने को अपने होठों की खूबसूरती.
मेरे दोस्त !
सफलता भाग्य से मिलती है
लेकिन भाग्य खैरात नहीं देता
क्योंकि
सफलता और भाग्य दोनों
सतत प्रयासों का परिणाम है
जहाँ सिर्फ पड़ाव होते है
मंज़िल नहीं ...

सुबोध
 

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16 . पैसा बोलता है ...

                पैसे के लिए बुराई की जड़,हाथ का मैल,पाप की कमाई जैसे विशेषणों का इस्तेमाल करने वाले  शख्स से पैसे के बारे में बात करना एक तकलीफदेह अनुभव होता है . ऐसे शख्स को  पैसे की बुनियादी समझ नहीं होती है सो  पैसा इनके  लिए मज़ाक की बात होती है या फिर ये  लोग अपनी असफलता को जायज ठहराने के लिए कुतर्कों का सहारा लेते है लिहाजा ये  पैसे को ही नाजायज ठहरा देते है  , हकीकत में ये  अपनी खिसियाहट छुपा रहे होते है .
             अगर उनके कुतर्कों का जवाब कुतर्क से ही देना हो तो कुछ जवाब ये हो सकते है -
             अगर पैसा बुराई की जड़ है तो बुराई का पेड़ तो बड़ा विशाल होगा और आश्चर्य ,उस बुराई के पेड़ से अमीरों के लिए सुविधाएँ बरसती है और गरीबों के पास  बुराई की जड़ नहीं है तो उनके लिए तकलीफे हाज़िर हो जाती है !
            अगर पैसा हाथ का मैल है तभी तो गरीब आदमी उस मैल से शीघ्रातिशीघ्र छुटकारा पा लेता है क्योंकि मैल के साथ चिपके रहना उचित नहीं है ! 
            अगर पैसा पाप की कमाई है तो खुश हो जाइये मरने के बाद गरीबों को स्वर्ग मिलेगा और अमीरों को नरक - अगर होता हो तो ! इस जनम में तो स्थिति उलटी सी है !
         हकीकत में ये अपनी अधूरी जानकारी और समझ को लेकर ज़िन्दगी की कठिन डगर को और कठिन बना रहे है ऐसे लोग खुद के साथ-साथ अपने परिवार और रिश्तेदारों  के लिए  भी खतरनाक होते है . गाहे-बगाहे ये अपनी सोच को अन्य लोगो पर भी थोपने का प्रयास करते रहते है ! 
           ऐसे शख्स अगर आपके साथी है तो बेहतर है इनकी पैसे को लेकर नकारात्मक धारणाओं को आप अनसुना कर देवे ,ये खुद भीड़-भाड़ वाले रास्ते पर है और आपको भी उसी रास्ते पर चलाना चाह रहे है जो कतई  उचित नहीं है !!
- सुबोध 

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15 . पैसा बोलता है ...

            मेरे पास अमूनन कमेंट आते है कि आदमी को मन से अमीर होना चाहिए .पैसा प्रेम जितना महत्त्वपूर्ण नहीं है ,सबसे बड़ी दौलत दोस्ती होती है ,परिवार का प्यार ही सच्ची अमीरी है वगैरह...

             क्या आप भी ऐसा ही सोचते है अगर सोचते है तो आप गलत ट्रैक पर है !

            आप भौतिक  आवश्यकताओं, जरूरतों  को नकार नहीं सकते जिसे पैसा पूरी करता है .

            इसी तरह आप भावनात्मक जरूरतों ,आवश्यकताओं को भी नहीं नकार सकते जिससे  आप अपने परिवार,अपने दोस्तों,रिश्तेदारों के जरिये स्वयं को संपूर्ण करते है .

            मेरे अनुसार यह तुलना ही बेमानी है यह तुलना बिलकुल वैसी ही है कि आपसे पूछा जाये आपके लिए भौतिक जगत   महत्वपूर्ण है या भावना जगत  ?

           इसे साधारण , समझ में आने वाले उदहारण से  समझने के लिए आप समझे कि आपसे पुछा जाये आपके लिए आपके हाथ महत्व पूर्ण है या पैर ?

         आपके लिए यकीनन दोनों ही महत्वपूर्ण है .

           पैसा उन क्षेत्रों में बहुत महत्वपूर्ण है जिनमें ये काम करता है ,और उन क्षेत्रों में बहुत महत्वहीन है जिनमें ये काम नहीं करता .हो सकता है आपकी अन्य भावनाओ से दुनिया चलती हो लेकिन उनसे आप किसी हॉस्पिटल का बिल नहीं चुका सकते,स्कूल की फीस नहीं भर सकते,रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी नहीं कर सकते.

          अब भी आपको यकीन नहीं है तो अपनी इन भावनाओं की हकीकत समझने के लिए इनमे से किसी से एक बड़ी रकम उधार लीजिये और फिर उसे भूल जाइये ,जल्द ही आप को यकीन हो जायेगा कि पैसे के क्षेत्र में पैसा कितना महत्वपूर्ण है .
सुबोध -

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14. पैसा बोलता है ...

          एक मुहावरा बार-बार सुनने में आता है" पैसे का क्या है ,पैसा तो हाथ का मैल है "

          मैं सोचता हूँ क्या पैसा वाकई हाथ का मैल होता है ? क्या आप अपने शरीर पर मैल रहने देते है ? कोई भी मैल क्यों इकठ्ठा करेगा - सब तो सफाई चाहते है !!,एक बात तो पक्की है कि ऐसी सोच वालों के पास पैसा होता  नहीं है , टिकता नहीं है  क्योंकि इस तरह के वाक्य यही साबित करते है कि हमें पैसे की कोई कदर नहीं है और जिस चीज़ की आपको कदर नहीं होती है वो आपके पास टिकती भी नहीं है .

          एक बात और, ऐसे वाक्य कोई भी अमीर इस्तेमाल नहीं करता क्योंकि उसे ये पता होता है कि " पैसा बहुत कुछ होता है"  और  पैसा हाथ का मैल  नहीं बल्कि उसकी जी-तोड़ मेहनत का फल है ,नतीजा है और मेहनत से कमाई हुई,हासिल की हुई चीज़ की दिल एवं दिमाग में कदर होती है ,उसके लिए कोई ओछे और हलके शब्दों का इस्तेमाल नहीं करता - मजाक में भी नहीं !!

        इस तरह के शब्द या तो गरीब इस्तेमाल करते है या जिन्होंने खुद के दम पर ,अपनी मेहनत और लगन से इसे नहीं कमाया या हासिल किया होता है !

         शब्द आपकी जिंदगी का प्रतिबिम्ब होते है ये आपके अतीत से बनते है वर्तमान से सँवरते है और भविष्य का निर्माण करते है ,इनकी ताकत अनुपम होती है ,इन्हे बोलने और सुनने में सावधानी बरते ,अगर आप ऐसे लोगों के संपर्क में है जो इस तरह के नकारात्मक शब्दों का,वाक्यों का इस्तेमाल करते है तो आप अपने भविष्य को लेकर सावधान हो जाइये !! शब्दों की ताकत को समझिए वे आपको अपरिवर्तित नहीं रहने देते , नकारात्मकता हमेशा खतरनाक होती है,अगर आप अमीरी की डगर पर चलने के इच्छुक है तो जितनी जल्दी हो सके ऐसे शब्दों,वाक्यों को कहने वालों से दूरी बना ले !!!
सुबोध

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13 . पैसा बोलता है ...

"बेईमान अमीर और ईमानदार गरीब " अक्सर सुनने में आता है. 
मैं सुनता हूँ तो इसका इसका जो पहला अर्थ  मेरे समझ में आता है वो ये  है कि संसार के सारे अमीर बेईमान होते है और संसार के सारे गरीब ईमानदार होते है. ये इसका शाब्दिक अर्थ है . जब मैं इस वाक्य की गहराई में जाता हूँ ,शब्दों के अंदर छुपी हुई भावनाओं को समझने का प्रयत्न करता हूँ तो इसका सही अर्थ समझ में आता है कि ये मुहावरा उन असफल लोगों द्वारा गढ़ा गया है जो अपनी गरीबी पर ईमानदारी का मुलम्मा चढ़ा कर खुद को संतुष्टि देना चाहते है .
वास्तव में ईमानदारी और बेईमानी चरित्र का प्रश्न है और चरित्र के मामले में दोनों ही ईमानदार हो सकते  है और दोनों ही बेईमान भी हो सकते है . 
दरअसल असफल लोगों ने , पराजित लोगों ने खुद की शर्मिंदगी कम करने के लिए या कहिये खुद को तसल्ली देने के लिए बहुत से उल-जुलूल,ना-समझी भरी बातें या कहिये मुहावरे गरीबी के समर्थन में और अमीरी के विरोध में गढ़ लिए है,प्रसारित कर दिए है ( लोमड़ी के लिए अंगूर खट्टे होते है )
कृपया इस तरह की बेवकूफी भरी बातों में उलझ कर अपना अमीरी हासिल करने का लक्ष्य ना बिसराये . हकीकत में ऐसी बातें करने वाले लोग हारे हुए खिलाडी है ,वे कोशिश करकर देख चुके और असफल हो चुके है उन्हें लगता है कि आपकी क्षमता उनसे बेहतर नहीं है और जब वे हार चुके है तो आप कैसे जीतेंगे ? वे आपको हार के दर्द से बचाना चाहते है - आपके तथाकथित शुभचिंतक जो ठहरे !!
कृपया अपने सुव्यवस्थित प्रयास जारी रखे. 
यह बात अच्छे से समझ लेवे कि जैसे शिक्षा के क्षेत्र में ग्रेजुएट होना,राजनीति के क्षेत्र में मंत्री बन जाना ,धर्म के क्षेत्र में मठाधीश बन जाना सफलता माना जाता है ठीक उसी तरह अर्थ के क्षेत्र में अमीर बन जाना सफलता का प्रतीक है  
ये वाक्य "अर्थ के क्षेत्र में अमीर बन जाना सफलता का प्रतीक है " दो बार , तीन बार ,चार बार  और जब तक आप के मन से ग्लानि ना हट जाये तब तक पढ़ने लायक है . 
सुबोध 

12. पैसा बोलता है ...


पैसा किसी काले व्यक्ति से नहीं कहता कि तुम काले हो इसलिए मैं तुम्हारे पास नहीं आऊंगा  और न ही ये किसी गोरे व्यक्ति से उसके गोरेपन  के कारण नाराज़ रहता है  . ये उस बीमारी से ग्रस्त है जिस बीमारी का नाम" कलर ब्लाइंड" है .
पैसा शिक्षित या अशिक्षित में कोई फर्क नहीं करता - यहाँ शिक्षित से मेरा तात्पर्य अकादमिक शिक्षा से है .
पैसा जाति देखकर चुनाव नहीं करता कि मैं ऊँची जाति वालों के घर में ही रुकुंगा या नीची जाति वालों के घर मैं ही रुकुंगा.
इसी तरह से पैसा ये नहीं कहता कि मैं अमुक धर्म वालों के पास ही रहूँगा  और दुसरे धर्म वालों के पास नहीं रहूँगा .
पैसा किसी की आर्थिक स्थिति से भी प्रभावित नहीं होता कि अमीर के पास ही रहेगा,गरीब के पास नहीं रहेगा या नहीं होगा. 
और तो और पैसा  तो उम्र को भी अहमियत नहीं देता .
ये संसार के सारे बंधनो से आज़ाद है !! 
यह सबको खुली चुनौती देता है कि आओ मुझे हासिल करो ......
अगर कोई कहता है 'मुझे दौलत चाहिए' तो उसे अपनी काबिलियत साबित करनी होगी 
और अगर कोई कहता है 'मुझे दौलत नहीं चाहिए' तो ज़ाहिर सी बात है ये उसको मिलेगी.भी नहीं .
पुरानी कहावत है काबिल आदमी इसे हासिल करता है और नाकाबिल बहाने बनाता है .

सुबोध -

11 . पैसा बोलता है ...


 मेरी पिछली सारी पोस्ट कंडीशनिंग को लेकर लिखी गई है , अब जब आपने कंडीशनिंग के बारे में काफी कुछ पढ़ लिया है और अपनी आज की स्थिति के मूल में क्या है ये भी समझ लिया है तो अब आप  नये तरीके से सोचना -समझना और करना शुरू करें .
पैसे को लेकर आपके मन में जो भी गलत धारणाएँ बनी है, बनाई गई है उन सबको सिरे से ख़ारिज कर देवे . जो आपसे पैसे की बुराई करता है ,आप सिर्फ उसकी मानसिकता को समझने का प्रयास करें और उन कारणों को भी जिस वजह से वो ऐसा कर रहा है फिर देखें कि कही इसी से  मिलती-जुलती फाइल आपके दिमाग में तो नहीं है जो गलती से आप डिलीट करना भूल गए हो ? अगर है तो उसे तत्काल डिलीट कर देवे ,नकारात्मक विचारों का साथ वर्तमान और भविष्य बिगाड़ने के अलावा कोई उपलब्धि नहीं दे सकता . 
ध्यान रखे पैसा तटस्थ होता है वो खुद में कभी गलत नहीं होता, कुछ लोग जो अमीर बन जाते है, बन पाते है ये उनकी काबिलियत होती है . 
जो आपसे कहते है कि ये लोग गलत तरीके से अमीर बने है उन्होंने  संभवतः सिक्के का आधा हिस्सा ही देखा होता है  क्योंकि जिस वर्ग से वे आते है उस वर्ग के खेल के नियम अमीरों के खेल के नियम से अलग होते है ,  अपने वर्ग के नियमों के अनुसार वे सही हो सकते है लेकिन उन्हें अमीरों के खेल के नियम पता नहीं होते लिहाजा अधूरी जानकारी होने की वजह से वे गलत हो जाते है.  उनके तर्क बड़े गौर से सुने ,उन्हें समझे और देखे कि वे गलत कहाँ है, अगर आपके समझ में नहीं आये तो किसी सी.ए. से ,किसी फाइनेंसियल प्लानर से या समाज के सम्मानित व्यक्ति से पूछे बशर्ते वो खुद अमीर हो !  अमीरों की सोच समझने के लिए या तो आपको अमीर होना पड़ेगा या उनका सोचने का तरीका समझना पड़ेगा . 
कृपया ये समझ लेवे अमीरों का सोचना समझना और करना बिलकुल अलग तरीके का होता है अगर आपने  अब भी अपने दिमाग से  "गरीबी" नामक सॉफ्टवेयर डिलीट नहीं किया है तो आपके समझ में ये तरीका नहीं आएगा . 
ये ध्यान रखे लाइम लाइट में रहने वाले लोगों को पता होता है हम हमेशा निशाने पर रहेंगे लिहाजा वे कानून का अक्षरशः पालन करते है - और अमीर वर्ग हमेशा ही लाइम लाइट में रहा है, रहेगा !. अमूनन कोई भी अमीर गलत नहीं होता है बस उनके खेल अलग होते है,खेलने के पाँसे अलग होते है,खेल के नियम अलग होते है और सारा फर्क इसी बात से पड़ता है !! 
- सुबोध 

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10 . पैसा बोलता है ...

हम कारण और  परिणाम की दुनिया में रहते है जो कुछ करते है उसके पीछे कोई न कोई  कारण होता है और उस  कारण की वजह से हम कार्य करते है .ज़ाहिर सी बात है किये हुए कार्य का परिणाम भी मिलेगा . 
आपकी कंडीशनिंग आपके विचारों को पैदा करती है ,आपके विचार आपकी भावनाओं को , भावनाएं कार्य और कार्य परिणामों को .
अगर आपको अपनी कंडीशनिंग बदलनी है तो पहले स्वयं में स्वीकृति  पैदा करें कि " हाँ ,मुझमें  ये गलत कंडीशनिंग हुई है"
 कब हुई , कहाँ से हुई ,कैसे हुई ,क्यों हुई इन सब की विस्तृत डिटेल तैयार करें 
जब आपको ये पता चल जाता है कि  सोचने का वर्तमान तरीका आपका स्वयं का नहीं है बल्कि किसी और का है तो अब आप चुनाव कर सकते है कि  आगे इसी तरीके से सोचना जारी रखा जाए या और कोई नया तरीका अपनाया जाए . 
जब आप ये सब स्थिति समझ लेवे तब आप स्वयं को नए सिरे से रि -कंडिशन कर सकते है -- जो आपका खुद का सोचने का तरीका होगा ,अपने भविष्य को ध्यान में रखते हुए अपनी जरूरत के अनुसार आप अब खुद के नियम बना सकते है .
- सुबोध 

9. पैसा बोलता है ...


अगर आपको अहसास हो रहा है कि आपकी  कंडीशनिंग गलत हुई है और उसे सुधारा जाना चाहिए तो  आपको कुछ चरणो से गुजरना पड़ेगा , आइये उन चरणों को समझ लेवे -
1 ) जानकारी- आप किसी भी चीज़ को जब स्वीकार करते है कि हाँ, मुझ में यह दिक्कत है .तभी उस बारे में कुछ हो सकता है . अगर आप उसका होना ही स्वीकार नहीं करेंगे,उसके अस्तित्व से ही इंकार करेंगे तो ज़ाहिर सी बात है उस बारे में कुछ किया भी नहीं जा सकता . अमूनन जब हम अपनी कंडीशनिंग को बदलने की  बात कर करते है तो ज्यादातर लोग उसके अस्तित्व से ही इंकार कर देते है और बरसों से पाली हुई धारणाओं की रक्षा के लिए दिमाग नाम का स्टोर रूम अजीब-अजीब से तर्क देता है और उसका सबसे प्रिय तर्क" भाग्य " होता है .

2 ) जानना  - जब आप ये स्वीकार कर लेते है कि ये कंडीशनिंग गलत है,उचित नहीं तब आपको ये समझना है ,जानना है कि ये सोच पैदा कहाँ से हुई ये कौन सी कंडीशनिंग है- शाब्दिक ,अनुसरणात्मक या विशिष्ट घटनात्मक  ,उस घटना ,उस सोच को बराबर समझे उसका विश्लेषण करेंगे तो आपको समझ में आएगा कि आपकी आज की स्थिति उस घटना की वजह से है आपको बाहर जो परिणाम मिल रहे है उसकी वजह आपके दिमाग में भरा हुआ उस घटना का असर है.पेड़ पर जो फल आ रहे है उसकी वजह जड़ है जिसे उस घटना ने क्षतिग्रस्त कर दिया है . 
3 ) जान छुड़ाना - जब आप ये समझ लेते है कि ये सोचने ,समझने और करने का तरीका आपका  अपना नहीं है बल्कि किसी घटना विशेष ने आपके दिमाग में ये फाइल स्टोर की है तो आपको इस फाइल को डिलीट करना पड़ेगा.
कृपया इसे बराबर समझ लेवे आपका कोई दोस्त अपने लैपटॉप के साथ-साथ आपके लैपटॉप पर भी कोई ऐसा सॉफ्टवेयर  डाउनलोड कर देता है जो आपके काम का नहीं है और  जिससे आपके लैपटॉप की स्पीड स्लो हो जाती है तो आप क्या करेंगे ?
क्या ये समझदारी नहीं है कि आप उस सॉफ्टवेयर को डिलीट कर देवे ?
अगर आपके दोस्त को  उस सॉफ्टवेयर की जिसकी खासियत है कि वो लैपटॉप की स्पीड स्लो कर देता है , ज़रुरत होगी तो अपने लैपटॉप से इस्तेमाल कर लेगा, आप अपने लैपटॉप पर ये अत्याचार क्यों होने देवे ?
तो जब आप अपनी गलत कंडीशनिंग को समझ लेते है और ये जान लेते है कि ज़िन्दगी में आपकी रूकावट की वजह वो गलत इस्टॉल की गई फाइल है  तो उसे भी दिमाग से डिलीट कर देवे . उन चीज़ों से ,धारणाओं से,सोच से मोहब्बत रखने से कोई फायदा नहीं है जो ज़िन्दगी में आपको पीछे रखे हुए है .
 अब जब आप इन तीनो चरणो से गुजर चुके है तो आप कोरे है और नए सिरे से अपनी ज़िन्दगी को आकार देने को तैयार है . अपने दिमाग में अब आप  अमीरी के ,सफलता के ,ऊंचाइयों के तरीके  इनस्टॉल करेंगे !
- सुबोध 


8 . पैसा बोलता है ...


बचपन में धन और धनी लोगों के मामले में हमारे अनुभव कैसे थे ?  ये अनुभव इस मामले में महत्त्वपूर्ण है कि हमारा "आज "सालों बाद भी उस अनुभव से प्रभावित है !
अगर आपने किसी गरीब आदमी को पैसे के अभाव में मरते देखा है और उसी दरम्यान किसी अमीर को अपनी अमीरी का भोंडा प्रदर्शन करते देखा है तो  आश्चर्य  नहीं आप गरीब के लिए सहानुभूति  रखे  और अमीर से नफ़रत करें ! ऐसी स्थिति में आपकी कंडीशनिंग ये होगी कि अमीर बुरे होते है वे बेज़रूरत पैसे खर्च कर देते है बजाय किसी गरीब को बचाने के . अब जब इस तरह की कंडीशनिंग आपकी बन जाती है तो आप जब भी आपके पास अमीरी आएगी आप उस अमीरी से दूर हट जायेंगे क्योंकि आपके दिमाग के स्टोर रूम  में जो फाइल इंस्टॉल है वो तो अमीर न बनने की है क्योंकि अमीर बुरे होते है. इस तरह की खास घटनाये भी आपकी कंडीशनिंग करती है ,जिसे हम तीसरे तरीके की कंडीशनिंग कहेंगे .
यानि पहली  कंडीशनिंग शाब्दिक दूसरी अनुसरण करना और तीसरी विशिष्ट घटनाये .
दिमाग सही तरीके से काम करे इसके लिए आपकी सोच और समझ का दायरा बड़ा होना चाहिए  लेकिन ऐसा होता नहीं है पहली बात हम  किसी भी बात पर बिना ढंग से सोचे समझे तत्काल प्रतिक्रिया व्यक्त करते है अमूनन हम दिमाग से नहीं दिल से सोचते है लिहाजा हमारे निर्णय और हमारी कंडीशनिंग भावनात्मक होती है .दूसरी बात जब एक बार हम अपनी कोई राय बना लेते है तो ये " ईगो  " वाली बात हो जाती है - येन-केन प्रकारेण हम उसे सही ठहराने का प्रयास करते है और दिमाग  नाम का स्टोर रूम हमेशा आपकी सोच की रक्षा के लिए तैयार रहता है आपकी सोच के अनुकूल तर्क आपके सामने रखता रहता है !
मैंने कंडीशनिंग पर इतने विस्तार से इसलिए लिखा है क्योंकि  यही आपकी गरीबी और अमीरी का मूल तत्व है यही आपके अमीरी या गरीबी नामक पेड़ की जड़ें है . अगर आप गलत कंडीशनिंग के शिकार है तो उसे सुधारा जा सकता है , सुधार के तरीके पर अगली पोस्ट में ...
सुबोध 

7 . पैसा बोलता है ...


आपने अपने बचपन में अपने माता-पिता को पैसे को लेकर किस स्थिति में देखा है -पैसे के लिए लड़ते-झगड़ते,हमेशा कम पड़ने की शिकायत करते हुए ?  वे पैसे उड़ानेवाले थे या कंजूस ?  क्या उन्होंने पैसे को  सही तरह से संभाला या बर्बाद होने दिया ?  वे निवेश के मामले में कैसे थे -चतुर या हारे हुए ?  वे जोखिम लेने वाले थे या सुरक्षित मानसिकता वाले ?  उनके पास पैसा टिका रहता था या कभी वाह-वाह और कभी आह -आह की स्थिति रहती थी ?  पैसा आपके घर में ख़ुशी लाता था या तनाव ?  वो आसानी से आता था या बड़ी मुश्किलों से ?

ये सारे सवाल बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इन सवालों में आपकी जड़े है . आप जो कुछ भी आज है उनकी  एक वजह इन सवालों का जवाब है , आपने जो कुछ अपने बचपन में या बड़े होते वक्त देखा है - अपने पेरेंट्स ,अपने अभिभावक , रिश्तेदार,पडोसी द्वारा पैसे को लेकर की गई प्रतिक्रिया या पैसे के प्रति किया गया व्यवहार -उन सब ने आप पर कुछ न कुछ प्रभाव डाला है . आप ऐसे ही वो नहीं बन गए है जो आप है बल्कि देखा  हुआ  व्यवहार  आपके अवचेतन मन को लगातार प्रभावित करता रहा है और उसी वजह से आप ऐसे बने है . 

लगातार किसी एक तरह के व्यवहार को देखने पर वो हमारे मनो-मस्तिष्क पर छा जाता है और जब हम बड़े होते है -अपने देखे हुए नायकों  या विलेन  की तरह तो हम भी वैसे ही व्यवहार करने लगते है जैसा हमने होता देखा है .  , ज़िन्दगी में अपने नायकों को या विलेन को जैसे करते देखा है उनकी कॉपी करना ,उनका अनुसरण करना इस तरह की कंडीशनिंग को  जिसे "अनुसरण करना" कहते है .

जैसा की मैंने पहले बताया था पहली तरह की कंडीशनिंग  शाब्दिक होती और दूसरी तरह की कंडीशनिंग अनुसरण करना होती है .
- सुबोध 

Wednesday, 24 September 2014

6 . पैसा बोलता है ...


आप अगर गरीब है या मुश्किल से गुजारा कर पाते है या अमीर है ,जैसे भी है ये आपकी कंडीशनिंग की वजह से  है . पैसे को लेकर आपकी जो कंडीशनिंग हुई है आप उसी के अनुसार बने है , आप चाहे जितने शिक्षित हो,आप चाहे जितना कमाते हो लेकिन आपकी कंडीशनिंग में अगर "अमीरी से नफरत" नामक सॉफ्टवेयर इंस्टॉल किया गया है तो आप कभी अमीर नहीं बन सकते. आप कमाए हुए पैसे को जायज या नाजायज किसी भी तरीके से खर्च कर देंगे , बर्बाद कर देंगे . 
इसे थोड़ा अलग तरीके से समझे -- 
डॉगी में "बॉक्सर" फाइटर ब्रीड होती है - ये मीडियम  साइज की होती है और खूंखार होती है ,जब पहली दफा हम इसके पिल्ले को  घर पर लाये थे तो सभी ने इसका विरोध किया था कि ऐसी ब्रीड घर पर नहीं रखी जाती खासकर ३ बैडरूम वाले फ्लैट में ,लेकिन हमने उसे अपने पास रखा और आज वो हमारे दिए गए निर्देशों के अनुसार खूंखार नहीं है -हमने उसकी कंडीशनिंग से खूंखारता नामक शब्द हटा दिया !!
एक बाज़ का अंडा मुर्गी के घोंसले में गिर जाता है और वो चूजे की तरह व्यवहार करना सीख जाता है और मुर्गा बन जाता है .
एक खूंखार और खतरनाक शेर पालतू बन जाता है , बहुत से ऐसे उदाहरण है जो कंडीशनिंग की ताकत बताते है.
तो कंडीशनिंग वह ताकत है, वो अवस्था है जिसमे अच्छे खासे इंसान को बर्बाद करने की क्षमता होती है !! आपके पैसे को मिटटी में तब्दील करने की इसमें क्षमता होती है , पैसे को छोड़िये आपके हष्ट-पुष्ट शरीर को भी बर्बाद करने की इसमें क्षमता होती है . 
जब आप रोड से गुजरते है तो थोड़ी अपनी ऑंखें खुली रखिये और दिमाग को केंद्रित कर उन हष्ट-पुष्ट  भिखारियों को देखिये जिनमे से 90 % को उनकी कंडीशनिंग ने भिखारी बनाया हुआ है .
कंडीशनिंग  जीवन के हर क्षेत्र में काम करती है - हर क्षेत्र यानि हर क्षेत्र  - कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जो इस से अछूता हो , आप माने या माने संसार की सबसे बड़ी ताकत यही है  .
यही आपकी गरीबी की वजह है और यही आपकी अमीरी की वजह !!!
- सुबोध

5 . पैसा बोलता है ...



जब आपको बार-बार एक ही बात एक या अलग-अलग  तरीके से कही या समझाई जाती है तो आप उसे   मानसिक तौर पर सच मानने लगते है, जैसे क्लासरूम में मैथ्स का टीचर किसी सवाल के किये गए गलत हल के बाद आपको बार-बार नाकाबिल बताता है और यही बातें टीचर की देखा-देखी आपके क्लासमेट्स भी आपको कहते है , दोहराते है . अपनी कमजोरी को आप बार-बार सुनते है आपके अवचेतन मन तक आपकी कमजोरी का सन्देश बार-बार पहुंचता है तो आप लगातार दोहराये जाने वाले शाब्दिक कंडीशनिंग   के शिकार हो जाते है और  मैथ्स आपकी कमजोरी हो जाती है  और मजे की बात ये है कि आपके टीचर और आपके क्लासमेट्स को पता ही नहीं होता कि उन्होंने किसी का अच्छा-खासा दिमाग बर्बाद कर दिया है , संसार के अधिकांश बच्चों को स्कूल नामक संस्था में अनजाने में ही नकारा और कमजोर बना दिया जाता  है और इस बात का उन्हें इल्म तक नहीं होता !!!
अगर आपमें सही तरीके से सोचने समझने की शक्ति है और  आप उनकी निगेटिव आलोचना को पॉजिटिव लेते है तो मैथ्स के आप ब्रिलियंट स्टूडेंट हो सकते है  लेकिन बच्चो में इतनी गहरी समझ नहीं होती कि वे तर्क सहित अपने दिमाग को सही राह पर रख सके. लिहाजा वे  उसे ही सच मान लेते है जिसे बारबार सुनते है .
यही कंडीशन जीवन के अलग -अलग क्षेत्रो में होती है और आदमी का अवचेतन मन इन्ही से आपको दिशाएँ बताता रहता है ,वो वही बाहर निकालता है जो उसके अंदर डाला गया है बिलकुल कंप्यूटर की प्रोग्रामिंग की तरह . अगर आप कम्पुयटर इस्तेमाल करते है तो समझ सकते है कि कंप्यूटर के कुछ पार्ट सिर्फ पार्ट  है जिसका उपयोग अंदर के प्रोग्राम के अनुसार कार्य करना भर है तो समझ लेवे आपका शरीर तो आपके अंदर के प्रोग्राम के अनुसार प्रतिक्रिया कर रहा है ,आपने अंदर क्या डाला है ,कितना डाला है,सही डाला है या गलत डाला है ये देखना शरीर का काम नहीं है , ये देखना आपके दिमाग का काम है और जो आप लगातार डालते है वही आपकी कंडीशनिंग बन जाती  है. 
अगर पैसे को लेकर आपके पेरेंट्स ने ,  परिवार के लोगों ने,  यार -दोस्तों ने , टीचर्स ने कहा है कि हर कोई अमीर नहीं बन सकता तो आप की कंडीशनिंग यही होगी कि" हर" कोई अमीर नहीं बन सकता और हर कोई में आप भी "हर" है . अगर आप पर्याप्त बड़े हो गए है और बनी हुई कंडीशनिंग को कैसे हटाया जाता है इसे जानते है और पुरानी प्रोग्रामिंग को हटा देते है तो आपके अमीर बनने के पूरे चांसेज है  . 
शब्दों को बोलने और सुनने से पैदा हुई कंडीशनिंग को शाब्दिक कंडीशनिंग कहते है .
-सुबोध  

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4 . पैसा बोलता है ...

कंडीशनिंग को समझने के लिए अमूनन जो उदाहरण लिया जाता है उसे ही ले रहा हूँ .

जब हाथी का बच्चा छोटा होता है तो उसे मजबूत रस्सी से बांध दिया जाता है वो मासूम बच्चा खुद को रस्सी से  छुटाने की बड़ी कोशिश करता है लेकिन रस्सी मजबूत होती है और वो छूट नहीं पातालगातार कोशिश करने और लगातार हारने के बाद धीरे-धीरे ये बात उसके दिमाग में घर कर जाती है कि रस्सी बहुत मजबूत है और मैं आज़ाद नहीं हो पाउँगा . एक दिन वो हाथी वयस्क हो जाता है अब रस्सी उसकी ताकत से कमजोर है लेकिन चूँकि ये उसके दिमाग में बैठा हुआ है कि रस्सी मजबूत है सो वो प्रयत्न ही नहीं करता - हाथी के दिमाग में जो बैठाया गया है कि तुम रस्सी के मुकाबले कमजोर हो इसे ही कंडीशनिंग कहते है कुछ लोग इसे ब्रेन वाश करना भी कहते है ..
बचपन में बहुत से लोगों के साथ पैसे को लेकर इसी तरह की कंडीशनिंग की जाती है . जैसे अपनी गरीबी की मजबूरी की वजह से या खुद की नाक़ाबिलियत को जायज़ ठहराने के लिए या अपनी विपरीत परिस्थितियों की वजह से - कारण जो भी हो माँ-बाप जब बच्चे से  ये कहते है "पैसा बुराई की जड़ है " और समर्थन में कुछ उदहारण देते हो तब  लगातार ऐसा सुनते-सुनते बच्चे के दिमाग में ये बात बैठ जाती है . वयस्क  होने पर भी ये बात उसके दिमाग से नहीं निकलती . और क्योंकि वो पैसे को बुराई की जड़ मानता है सो जैसे ही उसके पास पैसा आता है वो उस तथाकथित बुराई की जड़ से छुटकारा पाने का प्रयास करता है और येन-केन-प्रकारेण सफल हो जाता है . वो व्यक्ति पैसे को रोक कर भी रखना चाहे तो रोक कर रख नहीं पाता क्योंकि यहाँ उसका अवचेतन मन अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहा है .दिमाग चाहता है पैसा रोककर रखे लेकिन दिल इस बुराई की जड़ से छुटकारा चाहता है  ध्यान रहे दिल ( अवचेतन मन ) और दिमाग की लड़ाई में अमूनन  दिल जीतता है और मजे की बात ये है कि इस पूरी प्रक्रिया में उसको पता ही नहीं चलता कि वह किसी कंडीशनिंग का शिकार है.

- सुबोध 

3 . पैसा बोलता है ...

एक सबसे बड़ी समस्या जो आती है वो ये कि आप पैसा कमाते है अच्छे से कमाते है फिर भी रोक कर ,इकठ्ठा करकर नहीं रख पाते . इस बात की गहराई से जांच करें कि पैसे को लेकर आपके अवचेतन मन में क्या है क्या ऐसे या इनसे मिलते जुलते वाक्य आपने सुने है या ऐसे किसी वाक्य में आप यकीन करते है -
पैसा बुराई की जड़ है .
अमीर बनने के लिए गलत काम करने पड़ते है
अमीर लालची होते है
अमीर टैक्स की चोरी करते है ,करप्शन को बढ़ावा देते है
अमीर स्वार्थी होते है
अमीर घमंडी  होते है
अमीर चरित्रहीन होते है 
पैसा ख़ुशी नहीं खरीद सकता
पैसा कमाने के लिए खून -पसीना एक करना पड़ता है
हर कोई अमीर नहीं बन सकता
पैसा पेड़ों पर नहीं उगता
पैसा हम जैसे लोगों के नसीब में नहीं है
पैसा हाथ का मैल है
पैसे के पीछे भागनेवाले पागल होते है
उपरवाला दो वक्त की रोटी ठीक-ठाक दे रहा है ज्यादा पैसे का क्या करना है
जिसने चोंच दी है चुग्गा भी वही देगा
मुसीबत के वक्त के लिए पैसा बचा कर रखो
रहने दोहम इसका खर्च नहीं उठा सकते
अपनी इच्छाओं को कंट्रोल करना सीखो
गरीबों का ध्यान उपरवाला रखता है
स्वास्थ्य ही सर्वोत्तम धन है
कृपया इन शब्दों की गहराई में जाए . ये वे शब्द है जो आपको अमीर बनने से रोक रहे है ,( ऐसे शब्द या तो पैसे की बुराई कर रहे है या पैसे की अहमियत को नकार रहे है या आपका ध्यान पैसे से हटाकर और कहीं केंद्रित करने का प्रयास कर रहे है )अगर आपके सामने आपके बड़े-बुजुर्गों,सगे-सम्बन्धियों नेदोस्तों ने ,मिलने-जुलने वालों  ने  ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया है या उनके व्यवहार में ऐसा कुछ आपने होते देखा है  तो कृपया चेक करें कि वे शब्द अब भी अवचेतन में असर तो नहीं डाल रहे है - कहीं ये  कंडीशनिंग तो नहीं है .
किसी बिल्डिंग की नींव कमजोर हो  ऊपर के हिस्से को चाहे जितना सुन्दर बना लेवे ,नतीजा क्या होगा आप जानते है . आप चाहे जितना कमा लेवे लेकिन जब  आपकी अतीत की कंडीशनिंग ( आपकी ज़िन्दगी की नींव ) ही सकारात्मक  नहीं हुई है तो  नतीजा तो नकारात्मक होना ही है.  

-सुबोध

2 . पैसा बोलता है ...

बुराई की जड़ क्या है ?

पैसे से प्यार
या 
पैसे से नफ़रत 

इसके जवाब में कुछ लोग कहते है  कि पैसे से प्यार बुराई की जड़ है क्योंकि पैसा पाने के लिए आप गलत काम करते है , लोगों को धोखा देते है , टैक्स की चोरी करते है , पैसे कमाने के पीछे इतने पागल हो जाते है कि परिवार से दूर हो जाते है, धर्म से दूर हो जाते है , लिहाजा पैसे से प्यार नहीं करना चाहिए , उसके लिए पागल नहीं होना चाहिए .आदमी को इतना ही कमाना चाहिए कि उसका गुजारा हो जाए .संग्रह करने की तो ज़रुरत ही नहीं है जब ऊपरवाले ने पेट दिया है तो रोटी भी वही देगा ,इतने पशु है पक्षी है वो कौनसा संग्रह करते है ,देता है न उनको उपरवाला . 
क्या आप इन तर्कों से सहमत है ?
अगर आप इन तर्कों से सहमत है तो इनमे और कौन से तर्क जोड़ना चाहेंगे ?
और 
अगर इन तर्कों से सहमत नहीं है तो क्यों नहीं है , उस स्थिति में आप ऊपर दिए गए तर्कों का क्या जवाब देंगे ?
 कृपया इस पोस्ट को बराबर पढ़े , समझे और तब जवाब देवे . 
ये जवाब आपकी मानसिकता का प्रतिनिधित्व करेंगे  उस मानसिकता का जिस पर आपकी अमीरी या गरीबी निर्भर है !!!!
- सुबोध 

1 . पैसा बोलता है ...

ये वो शै है जो दुनिया को नचाती है ,गरीब तो गरीब पैसे वाला भी इसकी धुन पर नाचता है ,बच्चा हो या बुढ्ढा, साधु हो या गृहस्थ कोई भी इसके मोह से नहीं बच पाया है ,जिसके पास नहीं है वो तो इसे चाहता ही है लेकिन जिसके  पास है वो भी इसे चाहता है इसकी खूबसूरती वही समझ सकता है जिसके पास ये है और इसकी तड़फ वही समझ सकता है जिसके पास ये नहीं है ,संसार के सारे ऐशो आराम ,सारी सुविधाये इसी में समाई है , इसके बारे में ढेरों तरीके से लिखा गया है ,बड़े-बड़े विद्वानों ने अलग-अलग तरीके से इसकी व्याख्या की है , इसे पाने के,हासिल करने के अजब-गजब तरीके बताये है . कोई बिरला ही होगा जो इसके पीछे पागल नहीं है , इसकी ताकत इतनी ज्यादा है कि संसार के अधिकांश युद्ध इसी के लिए लड़े गए संसार के अधिकांश  धर्म इसे निषिद्ध घोषित करते है फिर भी इसके बिना उनका काम नहीं चलता ..

जी हाँ , इस ताकतवर ,कद्दावर शै को दुनिया जिस नाम से बुलाती है साधारण जुबान में उसे पैसा कहते है ,जो  अनमोल है अपने आप में बेजोड़ है !!!

ये ब्लॉग पैसे के बारे में ही है . निवेदन आपसे ये है कि इसमें मेरे  अनुभव,मेरे सच,मेरे तरीके मैंने बताये है हो सकता है वे अनुभव,वे सच,वे तरीके आपके लिए कारगर न हो क्योंकि मेरी परिस्थितियाँ और आपकी परिस्थितियां अलग-अलग हो सकती है ,और उसी के मुताबिक अनुभव,सच और तरीके भी बदल जाते है , मेरी बात को पढ़िए ,समझिए लेकिन मानिए मत क्योंकि अपने सच की तलाश व्यक्ति को खुद ही करनी पड़ती है ,अपने तरीके खुद बनाने पड़ते है और ज़ाहिर सी बात है अनुभव तो अलग ही मिलेंगे !तो आइये उस रास्ते  पर बढे जिसे लोग अमीरी का रास्ता  कहते है .......
सुबोध

1 comment:

  1. अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पैसा बहुत जरूरी है

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