अमीर बने ( Be Rich )

निर्धन से धनवान,गरीब से दौलतमंद,कड़के से अमीर , जानिये तरीके सोचने के,समझने के, करने के और बनने के

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Thursday, 12 February 2015

35 . ज़िंदगी – एक नज़रिया


कुछ भी करते हो तुम तो ये न समझना कि उसके जिम्मेदार तुम ही हो और अच्छा या बुरा जो भी असर पड़ेगा वो तुम पर ही पड़ेगा. तुम कोई भी गलत काम करते हो तो क्या सिर्फ तुम अकेले ही उसका फल पाते हो ? और कोई अच्छा काम करने पर ?

सोचो  तुम शराब पीकर घर आये हो बेसुध हो नशे में कुछ उल-जुलूल बक रहे हो ,परेशान कौन हो रहा है -तुम या तुम्हारा परिवार ?

तुम तो अपनी मस्ती में हो ,ये समझ कर कि मैं अपने गम गलत कर रहा हूँ पी लिए हो , तुम्हारा गम गलत हुआ या नहीं लेकिन तुमने अपना गम उनको दे दिया जिन्हे तुम बेहद प्यार करते हो और अपने होश में तुम उनके लिए कुछ भी करने को तैयार हो !
तुम सिगरेट पी रहे हो, धुआं वातावरण में छोड़ रहे हो अपना कलेजा फूँक रहे हो और बीमार पूरे वातावरण को कर रहे हो जिसमे परायों के साथ-साथ तुम्हारे अपने भी सांस लेते है , तुम्हारे शौक की कीमत तुम्हारे मासूम बच्चे चूका रहे है, तुम्हारी बीवी चूका रही है, तुम्हारे माँ-बाप , बहन भाई चूका रहे है क्योंकि तुम्हारा उगला हुआ गन्दा धुआं उनके फेफड़ो में समां रहा है !!
जिस तरह तुम्हारी खुशियां तुम्हारी अपनी नहीं है उसी तरह तुम्हारे गम ,तुम्हारे दर्द भी तुम्हारे अपने नहीं है तुम्हारा फ्रस्ट्रेशन सिर्फ तुम्हारा अपना नहीं है। हमेशा इस बात का ख्याल रखना हो सकता है दुनियाँ के लिए तुम एक व्यक्ति हो, हो सकता है खुद के लिए भी तुम एक व्यक्ति हो लेकिन तुम्हारे परिवार के लिए तुम पूरी दुनियां हो , तुम्हारा होना -सही सलामत होना उनके लिए उनकी खुशियों की चाबी है
सुबोध -फरवरी १२ , २०१५
आभार सहित निम्न ब्लॉग से लिया गया
http://ameerbane.blogspot.in/


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Tuesday, 10 February 2015

34 . ज़िंदगी – एक नज़रिया


तुम्हे पता नहीं है क्या होगा जब तुम कुछ करने की कोशिश करोगे हो सकता है तुम असफल हो जाओ या हो सकता है सफलता तुम्हारे कदम चूमे लेकिन अगर तुम कुछ भी कोशिश नहीं करोगे तो ये निश्चित है तुम्हारे साथ कुछ भी नहीं होगा न सफलता और न ही असफलता तुम जैसे हो वैसे ही रहोगे या तुम खुद ही पिछड़ जाओगे ज़माने की तेज चाल के मुकाबले लेकिन सोचना अपने खाली समय में कि क्या उपरवाले ने तुम्हे आगे बढ़ने के लिए भेजा है या ठहरकर सड़ने के लिए - ठहरा हुआ हर कुछ सड़ जाता है चाहे वो पानी हो या विचार हो या इंसान हो !!!!
सो ठहरो मत, रुको मत , मत बैठो शांत , करते रहो कुछ न कुछ सार्थक , चलते रहो, आगे बढते रहो और हर पल कुछ नया पाने का प्रयास करते रहो क्योंकि कुछ करना ही, कुछ पाना ही तुम्हे वहां पहुंचाएगा जहाँ तुम्हे होना चाहिए , अपने उस होने की तलाश कभी बंद मत करना , जिस दिन तुम ये तलाश छोड़ दोगे समझना उसी क्षण तुम्हारी मृत्यु हो गई है , ठहरना एक शून्यता है और शून्यता मृत्यु तुल्य है .या यूँ समझिए कोशिश ही जीवन है , .........
सुबोध- फरवरी १०, २०१५ 
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Sunday, 8 February 2015

33 . ज़िंदगी – एक नज़रिया




कुछ सम्बन्ध ऐसे भी होते है जिन्हे हम दिल और दिमाग से लगाये बैठे होते है जिन पर हमे गुमान होता है ,गौरव होता है उन संबंधों की कलई तब खुलती है जब आप तकलीफ में होते है. हम उस बेवक़ूफ़ बंदरिया से कुछ भी अलग नहीं होते जिसका छाती से चिपका हुआ बच्चा किसी सक्रमण से ग्रसित होकर मरा हुआ उसके सीने से चिपका रहता है और वो अपने सीने से उसे चिपकाये रहती है शायद उसे पता ही नहीं चलता कि ये बच्चा अब ज़िंदा नहीं है या उसे ये वहम रहता है कि ये वापिस ज़िंदा हो जायेगा या वो उस बच्चे के प्यार में इतनी पागल होती है या.....

इन पंक्त्तियों को लिखते वक्त हमारे दिल और दिमाग में दर्द की लहरें हैं या जैसे किसी ने बुरी तरह आँतड़िया निचोड़ दी है -एक दर्द और सूनेपन का एहसास !! इन पंक्त्तियों का अर्थ वहीं समझ सकता है जिसने अपने सम्बन्धो की टूटन को झेला है , कब कोई इतना दूर चला गया , कब इतने विरोध पैदा हो गए , कब स्वार्थ के पहाड़ इतने विशाल हो गए कि सम्बद्ध बौने हो गए इसका एहसास ही नहीं हुआ !!!!

आज हमारे दर्द की सर्द ठिठुरन में हम उन संबंधों में गर्माहट तलाश रहे हैं , जो सम्बन्ध रहे नहीं - उनके लिए ये ऐसा बोझ है जिसे ढोना समझदारी नहीं है , वो इतने समझदार हो गए और हम सम्बन्धो को ढोने वाले छोटे इंसान रह गए उफ़ , ये क्या हो गया ,कब हो गया सोच रहा हूँ कि उनकी महानता के सामने हम इतने नगण्य कैसे रह गए और हमे कहीं कोई जवाब नहीं मिल रहा , स्पष्टीकरण बेमानी हो जाते है ,और गुजरे हुए हलके फुल्के लम्हे दर्द के दरिया में छोड़ जाते है .

शायद सम्बद्ध खोना उतना दर्दीला नहीं है जितना विश्वास खोना या उस अहम को ठोकर लगना कि उन्होंने हमे उन लम्हों में छोड़ा जब हमें उनकी दरकार थी , उनके स्वार्थ हमारे त्याग से बड़े जो हो गए . निसंदेह वे बड़े समझदार थे जो फल रहित पेड़ के साये से दूर हो गए - उनकी निगाहों में हम फल देनेवाले पेड़ की जगह चुके हुए - ठूंठ हो गए थे. यानि कूल मिलाकर वे संबंधों में एक व्यापार की तलाश कर रहे थे और खुद को WIN और हमें LOOSE की स्थिति में रख रहे थे जबकि संबंधों का पैमाना हमेशा WIN - WIN होता है .

हम बेवकूफों की तरह जी रहे है और खुद को उन संबंधों की निरर्थकता आज भी नहीं समझा पा रहे है ,पता नहीं किस उम्मीद की डोर हमें थामे हुई है -उस बंदरियां की तरह !!! काश हम थोड़े समझदार होते थोड़ी दुनियादारी हमे भी आती !!!!
सुबोध, ७ फरवरी ,२०१५ 



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Saturday, 7 February 2015

32 . ज़िंदगी – एक नज़रिया



काम (जिसे ज्यादातर लोग एक बोझ समझते है) की शक्ल में आने वाली उपलब्धियां जब गुजर जाती है और जो काम को इज्जत देता है उसे जब उपलब्धियां इज्जत देती है तब लोगों को समझ में आता है कि हमने गलती कहाँ की !

दरअसल उनकी अस
फलता की वजह उनकी मानसिकता होती है जो काम को बोझ समझते है .
मानसिकता एक अदृश्य स्थिति है दिमाग के स्तर पर जबकि उपलब्धि एक भौतिक स्तर है , दिमाग के स्तर से भौतिक स्तर पर आने के लिए जिस पुल की जरूरत होती है उसी पुल का नाम काम है , लिहाजा सिर्फ और सिर्फ कर्म ही महत्त्वपूर्ण है, ज्ञान की बातें कोई महत्व नहीं रखती अगर उन पर काम नहीं किया गया हो - गौर करें ज्ञान भी दिमाग का एक स्तर है .

विद्वान की विद्वता ज्ञान हासिल करने में है उनका लक्ष्य ज्ञान को हासिल करना है उस ज्ञान का उपयोग वे नहीं करते , सिर्फ और सिर्फ ज्ञान का संग्रह करते रहते है अंततः वे समाज में एक बड़े और प्रसिद्ध विद्वान के रूप में स्थापित हो जाते है लेकिन ज्ञान हासिल करने के इतर कर्म न करने की वजह से भौतिक स्तर पर उन्हें ढंग से दो वक्त की रोटी भी नहीं मिलती .

इसे एक उदाहरण से समझे - गुलज़ार साहब फिल्म इंडस्ट्री के नामी गीतकार है वे बड़े ज्ञानी भी है- एक विद्वान शख्सियत है , अगर उन्होंने सिर्फ ज्ञान हासिल किया होता उस ज्ञान की मार्केटिंग का कर्म न किया होता तो ? जाहिर सी बात है हज़ारों गुमनाम शख्सियतों की तरह वे भी गुमनाम ही रहते , उन्होंने इस बात को समझा, और फिल्म इंडस्ट्रीज के बेहतरीन स्ट्रगलर बने , आज वे जिस मुकाम पर है बहुत से प्रतिभाशाली लोगों के लिए वो स्वप्न है .
आपकी जानकारी आपका ज्ञान कोई महत्व नहीं रखता अगर उसके साथ कर्म नहीं जुड़ा है. जैसे ढेरों लोग कहते है कि आज अमुक शेयर ऊपर जायेगा वो अपने तरीके से इसकी गणना करते है मार्किट को समझते है यह उनका ज्ञान है तब वे ऐसी बात करते है लेकिन उनको तब तक कोई फायदा नहीं होता जब तक वे उस तथाकथित शेयर का लेन- देन नहीं करते .

लिहाजा इस बात को समझ लेवे ज्ञान से भी अधिक महत्त्वपूर्ण कर्म है .काम को बोझ मत समझिए बल्कि एक उपलब्धि का द्वार समझिए !
क्या पता कौन सा कर्म एक अवसर की तरह आपके सामने आ जाये ;अवसर हमेशा काम की शक्ल में ही आता है अगर आपने काम किया है तो अवसर आपका है नहीं तो अवसर आकर चला भी जायेगा और आपको पता भी नहीं चलेगा आप सिर्फ उसका इंतज़ार करते रहेंगे !!!!
सुबोध- फरबरी ६, २०१५

Photo: 31 . ज़िंदगी – एक नज़रिया

अँधेरा नकारा पक्ष नहीं है रोशनी का वो तो सिर्फ ये बताता है कि यहाँ रोशनी नहीं है इसी तरह समस्या ये बताती है कि वर्तमान में आपके पास ऐसा विचार नहीं है जो तथाकथित समस्या का समाधान दे सके . समस्या कभी ये नहीं कहती कि मेरा समाधान नहीं है बल्कि ये तो आप स्वयं है  जो किसी तटस्थ परिस्थिति को समस्या का नाम देते है .

हो सकता है किसी अन्य के लिए आपकी समस्या कोई समस्या ही नहीं हो ठीक वैसे ही जैसे आपका अँधेरा उल्लू के लिए अँधेरा नहीं होता - उस बेचारे की तो रोशनी से आँखे चुंधिया जाती है  यानि आपका अँधेरा किसी के लिए सुकून हो सकता है और किसी की रोशनी आपके लिए दर्दनाक अनुभव - ठीक उसी उल्लू की तरह .

ज़िन्दगी कभी भी किसी की भी सीधी और सपाट नहीं होती फिर वो चाहे कोई भी क्यों न हो , हर एक को अपने हिस्से की गलतियाँ ,असफलता , अपमान , हताशा और अस्वीकार्यता झेलनी ही पड़ती है - कोई भी इस दौर से बच नहीं सकता . वो आप ही है जो इसे आसान बनाते है या मुश्किल , वो आप ही है जो इन मुश्किलों से गुजरकर निखरते है या बिखरते है , वो आप ही है जो खड़े होकर हर उलटे-सीधे वार को झेलते है और विजयी बन कर निकलते है या पीठ दिखा कर तहस -नहस हो जाते है , वो आप ही है जो अब तक ज़िंदा है - सारी परेशानियों के बावजूद - यानि आपने अपने हिस्से की अब तक की सारी मुसीबतें झेल ली है और आप जानते है कि वो मुसीबतें छोटी नहीं थी फिर भी आप ज़िंदा है . यकीन मानिये आपके ज़िंदा होने में किसी और से ज्यादा आपकी जिजीविषा का हाथ है,आपके सुदृढ़ विचारों का हाथ है  जो अँधेरे में रोशनी की तलाश भर है ,फिर वो चाहे अँधेरी ऊंघती सुरंग के पार के दूसरे सिरे पर मौजूद रोशनी का एहसास ही क्यों न हो या विचारों में दादी- अम्मा से सुनी हुई वर्षों पुरानी कहानियों में हर विकट परिस्थिति का सफलतापूर्वक सामना करने का कौशल - अँधेरे पलों में जलती हुई टोर्च .

जिन्हे आप समस्याएं मानते है दरअसल वो आपकी दिमागी खुराफात के अलावा कुछ नहीं है. आइये एक अलग तरीके से सोचे , जिसे आप समस्या कहते है उसे चुनौती कहकर देखे - आपका सोचने का, समझने का और खेलने का नजरिया बदल जायेगा और फिर चुनौती का सामना करना , एक लक्ष्य को पूरा करना टास्क बन जाता है जबकि समस्या आपके हाथ-पैर फुला देती है इसी तरह अँधेरे को समस्या के तरीके से देखने पर  हताशा होती है जबकि अँधेरे को चुनौती के तौर पर देखने पर दीपक याद आता है , मोमबत्ती याद आती है, लालटेन याद आती है , बिजली याद आती है ,आग याद आती है और बंद अँधेरी गुफा में दो पत्थरों की तलाश की जाती है - चकमक पत्थर की .
 
ज़िन्दगी आसान नहीं है लेकिन मुश्किल भी नहीं है , परिस्थिति आसान नहीं है लेकिन समस्या भी नहीं है - वो आप है और आपके सोचने का तरीका जो चीज़ों को आसान बनाता है या मुश्किल , बदलाव अंदर से शुरू होता है -जड़ों से ,तभी तो बाहर अच्छे फल आते है  - आइये अच्छे फल पाने के लिए अंदर से बदले ,हमारे सोचने के तरीके को बदले !!!

सुबोध -फरबरी १, २०१५  
आभार सहित निम्न ब्लॉग से लिया गया
http://ameerbane.blogspot.in/
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Wednesday, 4 February 2015

36 . पैसा बोलता है ...


एक साधारण सा सर्वमान्य सा जवाब चुना गया है ,जिस से हम में से किसी  को भी ज्यादा न सोचना पड़े क्योंकि अगर हम ने सोचना शुरू कर दिया तो संभव है हम जो जवाब दे वो  सुविधापूर्ण खोल से अलग हो - यही आज की शिक्षा नीति कर रही है - बच्चे जिनमे सोचने की क्षमता है उस क्षमता को क़त्ल कर दिया जाता है और उन्हें सिर्फ एक जवाब रटाया जाता है बाकी सारे जवाब विद्यार्थी को जीरो दिलाने वाले होते है लिहाजा कई दूसरे जवाब से वाकिफ होने के बावजूद भी विद्यार्थी जीरो के डर से उन्हें नहीं देता और सालों-साल इसी माहौल से गुजरता विद्यार्थी अंततः अपनी सोचने की क्षमता खो देता है और यही वो उपलब्धि है जो शिक्षा नीति शिक्षा के नाम पर बच्चों को उपलब्ध करवा रही है .( शिक्षा नीति आपको सिर्फ एक सही जवाब पर केंद्रित करती है बाकि के सारे जवाब आपको जीरो दिलाते है  ).
 बड़े होने के बाद कल के बच्चे जो आज वयस्क होकर ऑफिस में काम कर रहे है इसी संस्कृति से दुबारा वाकिफ होते है जब बॉस को ,सीनियर्स को किसी समस्या पर  उनके मन मुताबिक एक ही जवाब चाहिए होता है यानि उन व्यस्कों की क्रिएटिविटी कुचल दी जाती है , ये बॉस , ये सीनियर्स उसी शिक्षा नीति से निकले हुए पुर्जे है ,एक निश्चित सांचे में ढाले हुए पुर्जे जिनका सोचने का, समझने का और करने का एक निश्चित तरीका है . 
जब जड़ ही सड़ी-गली है, स्वस्थ्य नहीं है तो फल अच्छे कहाँ से आएंगे ?
अच्छे फल पाने के लिए  क्या आपको नहीं लगता कि शिक्षा नीति में एक बड़े बदलाव की दरकार है ? जहाँ बच्चों को रटना नहीं सोचना सिखाया जाए और सवाल का हल एक नहीं कई हो - बिलकुल  ज़िन्दगी  की  तरह . फिर निश्चित ही कपूर साहब के लड़के को जीरो नहीं दिया जायेगा और शायद किसी की भी ज़िन्दगी में जीरो नहीं होगा , क्योंकि ज़िन्दगी में हारने का डर कभी भी उस जवाब से नहीं होता जिसे आप जानते है बल्कि उस जवाब से होता है जिसे आप नहीं जानते . 
( कृपया इस बारे में पोस्ट 35 . पैसा बोलता है ... भी देखें )
 सुबोध- ४ फरबरी, २०१४ 
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Tuesday, 3 February 2015

कविता

तुम जो गलत बताते हो मुझे
कभी पहन कर देखो मेरे जूते
और चलो उतनी दूर
चला हूँ जितनी दूर मैं
तब शायद तुम समझ सको
मेरी कमजोरियां , मेरी मजबूरियां
बड़ा आसान है तुम्हारे लिए
खुद के जूते पहन कर सफर तय करना
खुद को सही और मजबूत साबित करना
मेरा सही या गलत होना मैं नहीं
तय करते है मेरे जूते
या तुम्हारा चश्मा
जो तुमने पहना है अपनी आँखों पर .
सुबोध- जनवरी २८, २०१५


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