अमीरों की हिम्मत जुआरियों वाली हिम्मत नहीं होती चूँकि ये
अंकों में बड़े साफ़-सुथरे होते है इसलिए एककेलकुलेटेड रिस्क लेते
है ,जहाँ हारने की सम्भावना न के बराबर होती है ,रिस्क एंड
रिवॉर्ड रेश्यो इनके फेवर में होता है ,और अगर चीज़ें इनके
अनुमान के मुताबिक नहीं होती तो इनमें इतनी काबिलियत होती है
कि परिस्थितियों के अनुसार खुद को बदल कर कार्य कर सके या
चीज़ों से अपने अनुसार कार्य करवा सके . इसके वाबजूद भी अगर
इनका कोई प्रोजेक्ट फ़ैल हो जाता है तो ये चूँकि अपने किसी
प्रोजेक्ट में अपना सब कुछ न झोंक कर 30 -40 % तक ही डालते है या फिर ये एक सिस्टम के तहत मार्किट से पूँजी उगाहते है सो ये पूरी तरह बर्बाद नहीं होते . जबकि गरीब आदमी अपनी पूंजी के साथ-साथ बीबी के गहने ,बच्चों की बचत ,रिश्तेदारों-दोस्तों तक की पूँजी अपने प्रोजेक्ट में डाल देता है - उसकी असफलता की कल्पना ही दर्दनाक होती है .उसे दो मोर्चों पर लड़ना होता है पहला प्रोजेक्ट की सफलता दूसरा पूँजी की सुरक्षा जबकि अमीर सिर्फ प्रोजेक्टकी सफलता पर ही ध्यान केंद्रित करता है.
-सुबोध
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