subodh

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Thursday 31 March 2016

39.सही या गलत -निर्णय आपका !

मंज़िल

मैं


थक गया हूँ


चलते-चलते,


बस..ये आखिरी मोड़


और आगे नहीं .


सोचता हूँ,


शायद जहाँ ये सड़क


ख़त्म होती है


और शुरू होता है


नया मोड़


वहीँ तक और चलना है मुझे .


बरसों चला हूँ


पसीने से लथपथ


थकान से चूर


गुजरा हूँ


अँधेरे रास्तों से


कई दफा सना हूँ


कीचड से


लेकिन


रूक नहीं पाया हूँ


हताशा के बाद भी


क्योंकि एक आशा


रूकने नहीं देती मुझे


शायद यही मोड़


आखिरी मोड़ हो


"जहाँ मुझे होना है."


एक सवाल


कचोटता है मुझे


क्या वो जगह


" जहाँ मुझे होना है."


आने के बाद भी


खुद को रोक पाऊंगा मैं ?
 

सुबोध -

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