subodh

subodh

Tuesday 13 January 2015

30 . ज़िंदगी – एक नज़रिया


तुम्हारा सच जड़ हो गया है , वक्त के चक्के में कहीं जाम हो गया है , उम्र तुम्हारी बढ़ी है लेकिन तुम्हारी सोच समय के किसी कालखण्ड में फंसी रह गयी है और उस दौर के तत्कालीन सच में ही अटकी हुई है तभी तो तुम कल जिन आशीर्वादों के कुछ अर्थ हुआ करते थे वही आशीर्वाद दोहराते जा रहे हो, जबकि आज वो आशीर्वाद एक बेवकूफी के बराबर हो गए है जैसे पूतों फलों या शतायु हो .
कहते है बहता हुआ सब शुद्ध होता है , नदी की तरह- जहाँ रूक गया ,ठहर गया वहीँ गंदलापन हावी होने लगता है फिर वो चाहे विचारों का बहाव ही क्यों न हो या कस कर पकड़ा हुआ सच ही क्यों न हो !!! जिन्होंने ये कहा है कि सच स्थायी होता है, हो सकता है उनका सच स्थायी हो लेकिन मेरी निगाहों में सब कुछ अस्थायी होता है , हाँ, कुछ सच दिनों में बदलते है, कुछ सालों में , कुछ सदियों में और कुछ युगों में - स्थायी कुछ नहीं होता ;उनकी सच की तासीर उन्हें मुबारक- तब तक उन्हें मुबारक जब तक मेरे सच से उनका सामना न हो .
मुझे तुम्हारे इस पकडे हुए सच से ,ठहरे हुए सच से ,जड़ हो चुके सच से,अपना औचित्य खो चुके सच से कोई दिक्कत नहीं है ,जब तक तुम मुझ से ये उम्मीद नहीं करते कि मैं तुम्हारे सच को स्वीकार करूँ - अपने सच को छोड़ कर ,त्याग कर,भूल कर - जो मैंने मेरे अनुभव से हासिल किया है !!
अगर तुम,मेरे सच को स्वीकार नहीं कर सकते तो कृपया मुझसे अपने सच को स्वीकार करने की मत कहो क्योंकि तुम्हारा सच तुम्हारा अनुभूत सच है और मेरा सच मेरे अपने अनुभव की देन है -- तुम्हारा सच तुम्हे मुबारक और मेरा सच मेरे पास रहने दो . अगर तुम मेरा सच स्वीकार करने को तैयार हो तो मैं भी तुम्हारा सच स्वीकार करने को तैयार हूँ इस शर्त पर कि फिर उन दोनों सचों को आपस में गलबहियां करने दो और जो पटखनी दे दूसरे को उस सच को तुम भी मानो और मैं भी - निर्णायक आज के युग को हो , वर्तमान के हो क्योंकि सबसे अहम सिर्फ वर्तमान होता है .
तुम राजा राम मोहन राय के ज़माने से पहले के सच को आज भी पकड़ कर बैठे हो और मैं औरत की संपूर्ण स्वतंत्रता की बात करता हूँ और मजे की बात ये है कि हम दोनों एक ही प्लेटफार्म पर खड़े है- हंसी भी आती है और अफ़सोस भी होता है हंसी इसलिए कि तुम जैसी मानसिकता के लोग आज भी ज़िंदा है और अफ़सोस इसलिए कि मंगल ग्रह तक जाने की बात करने वाले लोग तुम्हारे दिमाग की उलझी हुई तहों तक नहीं पहुँच पा रहे है !!!! उन तहों तक जो ज़माने को ,प्रगति को,इंसानियत को आगे बढ़ने से रोके हुए है !!!
सुबोध-जनवरी १३,२०१५
आभार सहित निम्न ब्लॉग से लिया गया
http://ameerbane.blogspot.in/

No comments:

Post a Comment